Book Name:Namaz Ki Ahmiyat
रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता आ़शिक़े रसूल ने उन पर इनफ़िरादी कोशिश फ़रमाई और आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के आ़शिक़ाने रसूल के साथ मदनी क़ाफ़िले में सफ़र करने की तरग़ीब दिलाई, उन की मह़ब्बत भरी दा'वत के सबब वोह मदनी क़ाफ़िले के लिये तय्यार हो गए और जल्द ही मदनी क़ाफ़िले के मुसाफ़िर बन गए । मदनी क़ाफ़िले की बरकत से उन्हें ज़िन्दगी में पहली बार पांचों नमाज़ें पाबन्दी के साथ पहली सफ़ में पढ़ना नसीब हुई और दीगर शरई़ मसाइल सीखने को भी मिले, आ़शिक़ाने रसूल की सोह़बत की बरकत से उन के अख़्लाक़ व किरदार में वाज़ेह़ तब्दीली आ गई, दिल गुनाहों से बेज़ार और नेकियों की जानिब माइल हो गया, सुन्नतों पर अ़मल करने का ज़ेहन बन गया, नमाज़ों की पाबन्दी का पक्का इरादा कर लिया और जल्द ही इ़मामा शरीफ़ का ताज सजा लिया । (मफ़्लूज की शिफ़ायाबी का राज़, स. 16)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हम नमाज़ की अहम्मिय्यत व फ़ज़ाइल के बारे में सुन रहे थे । याद रखिये ! नमाज़ दीन का सुतून है, नमाज़ बीमारियों से बचाती है, नमाज़ रोज़ी में बरकत का ज़रीआ़ है और अ़ज़ाबे क़ब्र से बचाने के साथ साथ अन्धेरी क़ब्र का चराग़ भी है । क़ुरआनो ह़दीस में जहां भी नमाज़ की अदाएगी का ह़ुक्म आया है, उस से मुराद नमाज़ को तमाम तर फ़राइज़ व वाजिबात के साथ अदा करना है । मर्दों के लिये नमाज़ के वाजिबात में से येह भी है कि उसे जमाअ़त से पढ़ा जाए । अह़ादीसे मुबारका में जमाअ़त के साथ नमाज़ पढ़ने के बहुत से फ़ज़ाइल बयान हुवे हैं । आइये ! तरग़ीब के लिये 3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनते हैं । चुनान्चे,
1. इरशाद फ़रमाया : जमाअ़त के साथ नमाज़ अदा करना, अकेले पढ़ने से सत्ताईस दरजे अफ़्ज़ल है । (بخاری،کتاب الاذان ، باب فضل صلوٰت الجماعۃ، ۱/۲۳۲،حدیث:۶۴۵)
2. इरशाद फ़रमाया : जिस ने अच्छी त़रह़ वुज़ू किया फिर फ़र्ज़ नमाज़ के लिये चला और इमाम के साथ नमाज़ पढ़ी, उस के गुनाह बख़्श दिये जाएंगे । (شعب الایمان، باب العشرون من شعب الایمان وہو باب فی الطہارۃ، ۳/۹، الحدیث: ۲۷۲۷)
3. इरशाद फ़रमाया : जब बन्दा जमाअ़त के साथ नमाज़ पढ़े फिर अल्लाह पाक से अपनी ह़ाजत का सुवाल करे, तो अल्लाह पाक इस बात से ह़या फ़रमाता है कि बन्दा ह़ाजत पूरी होने से पहले वापस लौट जाए । (حلیۃ الاولیاء،مسعر بن کدام ، ۷/۲۹۹،حدیث:۱۰۵۹۱)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि जमाअ़त से नमाज़ पढ़ने वाले को इस की कैसी कैसी बरकतें नसीब होती हैं । लिहाज़ा हमें भी पांचों नमाज़ें जमाअ़त के साथ मस्जिद की पहली सफ़ में अदा करने की आ़दत बनानी चाहिये । बसा अवक़ात बहुत से मा'ज़ूर और बड़ी उ़म्र के अफ़राद जमाअ़त से नमाज़ अदा करने के लिये बड़ी मुश्किल से चल कर मस्जिद की त़रफ़ आते हैं और जैसे उन्हें आसानी होती है नमाज़ पढ़ लेते हैं । अगर वोह इतनी तक्लीफ़ उठाने के बा वुजूद जमाअ़त से नमाज़ पढ़ने को तरजीह़ दे सकते हैं, तो हमें तो और ज़ियादा एहतिमाम और चुस्ती के साथ जमाअ़त के साथ नमाज़ अदा करनी चाहिये