Duniya Ki Mohabbat Ki Muzammat

Book Name:Duniya Ki Mohabbat Ki Muzammat

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़क़्क़े तवक्कुल येह है कि फ़ाइ़ले ह़क़ीक़ी अल्लाह पाक को ही जाने । बा'ज़ ने फ़रमाया : कस्ब करना (या'नी रिज़्क़े ह़लाल कमाना और) नतीजा अल्लाह (करीम) पर छोड़ना, ह़क़्क़े तवक्कुल है । जिस्म को काम में लगाए, दिल को अल्लाह (करीम) से वाबस्ता रखे, तजरिबा भी है कि अल्लाह पाक पर तवक्कुल (या'नी भरोसा) करने वाले भूके नहीं मरते । ख़याल रहे ! परिन्दे तलाशे रिज़्क़ के लिये आश्याने (या'नी घोंसले) से बाहर ज़रूर जाते हैं, हां ! दरख़्तों में चलने की त़ाक़त नहीं, तो उन्हें वहां ही खड़े खड़े खाद, पानी पहुंचता है । कव्वे का बच्चा अन्डे से निकलता है, तो सफे़द होता है, उस के मां-बाप उस से डर कर भाग जाते हैं, अल्लाह पाक उस बच्चे के मुंह पर भंगे (एक क़िस्म के छोटे से कीड़े) जम्अ़ कर देता है, येह बच्चा उन्हें खा कर बड़ा होता है, जब काला पड़ जाता है, तब मां-बाप आते हैं । (मिरआतुल मनाजीह़, 7 / 113-114, مرقات،۹/۱۵۶،تحت الحدیث: ۵۲۹۹)

तवक्कुल किसे कहते हैं ?

          'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : तवक्कुल तर्के अस्बाब (या'नी अस्बाब छोड़ने) का नाम नहीं बल्कि اِعْتِمَاد عَلَی الْاَسْبَاب (या'नी अस्बाब पर ए'तिमाद करने) का तर्क (या'नी छोड़ देना) है । (फ़तावा रज़विय्या, 24 / 379) या'नी अस्बाब ही को छोड़ देना तवक्कुल नहीं है, तवक्कुल तो येह है कि अस्बाब पर भरोसा न करे ।

2﴿...दुन्या और उस की सब चीज़ों से बेहतर

          रह़मते आ़लम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने आ़लीशान है : जन्नत में एक कोड़े (या'नी चाबुक) जितनी जगह, दुन्या और उस की चीज़ों से बेहतर है ।

(بُخارِیّ،۲/۳۹۲،حدیث:۳۲۵۰)

          मश्हूर मुह़द्दिस, ह़ज़रते अ़ल्लामा शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिसे देहलवी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के तह़्त इरशाद फ़रमाते हैं : जन्नत की थोड़ी सी जगह, दुन्या और उस की चीज़ों से बेहतर है । कोड़े या'नी चाबुक का ज़िक्र इस आ़दत