Book Name:Duniya Ki Mohabbat Ki Muzammat
दो चीज़ें वापस लौट आती हैं जब कि एक उस के साथ बाक़ी रहती है । घर वाले और माल लौट आते हैं जब कि उस का अ़मल उस के साथ जाता है ।
(بخاری، کتاب الرقاق، باب سکرات الموت، ۴/۲۵۰، حدیث:۶۵۱۴)
जब कि ह़ज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से रिवायत है : जब कोई शख़्स मर जाता है, तो फ़िरिश्ते कहते हैं : مَاقَدَّمَ या'नी इस ने आगे क्या भेजा ? और लोग पूछते हैं : مَاخَلَّفَ या'नी इस ने पीछे क्या छोड़ा ?
(شعب الایمان،باب فی الزہد و قصرالامل ،حدیث: ۱۰۴۷۵، ۷/۳۲۸)
या'नी मरते वक़्त वारिसीन (या'नी मय्यित के माल के ह़क़दार) तो छोड़े हुवे माल की फ़िक्र में होते हैं कि क्या छोड़े जा रहा है ? और जो फ़िरिश्ते रूह़ क़ब्ज़ करने (या'नी निकालने) के लिये आते हैं, वोह आ'माल व अ़क़ाइद का ह़िसाब लगाते हैं । (मिरआतुल मनाजीह़, 7 / 49)
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! अ़क़्लमन्दी का तक़ाज़ा येही है कि हम दुन्या और इस के सामान की फ़िक्र छोड़ें और नेक आ'माल करने में मश्ग़ूल हो जाएं । जिस मालो दौलत को कमाने के लिये हम ज़िन्दगी ख़त्म कर बैठते हैं, उस में से भी सिर्फ़ उतना ही हमारा है जितना हम ने ख़र्च कर दिया, जो रह गया, वोह हमारा नहीं बल्कि ह़क़दारों का होगा । याद रखिये ! इस पैसे ने किसी से वफ़ा नहीं की, येह वाके़ई़ हाथों का मैल है । बिलफ़र्ज़ अगर ज़िन्दगी में करोड़ों, अरबों रुपये जम्अ़ कर भी लिये जाएं, तब भी हम सिर्फ़ उतना ही इस्ति'माल कर सकते हैं जितना हम कर सकें । यूं समझिये ! जैसे किसी शख़्स को ख़ूब भूक लगी हो, सामने बिरयानी की देग पक रही हो, बिरयानी की भीनी भीनी ख़ुश्बू दिलो दिमाग़ को अपनी त़रफ़ खींच रही हो, दिल उस की त़रफ़ माइल हो, दिल कर रहा कि सारी की सारी देग खा ली जाए मगर दो, तीन प्लेटें खाना खाने के बा'द मज़ीद खाने की गुन्जाइश नहीं रहती । बसा अवक़ात ऐसा भी होता है कि पेट भर जाता है मगर दिल नहीं भरता, दिल कर रहा होता है कि और खाएं, बहुत लज़ीज़ बना हुवा है मगर खाते नहीं हैं, इस लिये कि मज़ीद खाने की गुन्जाइश ही नहीं रहती, पेट भर गया है, तो मज़ीद कैसे खाया जाएगा ?