Baron Ka Ihtiram Kejiye

Book Name:Baron Ka Ihtiram Kejiye

1.      इरशाद फ़रमाया : वालिद की रिज़ा में, अल्लाह पाक की रिज़ा है और वालिद की नाराज़ी में, अल्लाह पाक की नाराज़ी है ।

(ترمذی ،کتا ب البروالصلة، باب ماجاء من الفضل فی رضاء الوالدین،۳/ ۳۶۰،حديث: ۱۹۰۷)

2.      इरशाद फ़रमाया : वालिद की फ़रमां बरदारी, अल्लाह पाक की फ़रमां बरदारी है और वालिद की ना फ़रमानी, अल्लाह पाक की ना फ़रमानी है । (معجم اوسط،۱/۶۱۴،حدیث: ۲۲۵۵)

3.      इरशाद फ़रमाया : वालिद जन्नत के दरवाज़ों में से दरमियानी दरवाज़ा है, चाहे तो इसे ज़ाएअ़ कर दो और चाहे तो इस की ह़िफ़ाज़त करो ।

(ترمذی ،کتاب البروالصلة ،باب ماجاء من الفضل فی رضاالوالدین ،۳ / ۳۵۹،حدیث:۱۹۰۶)

 صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!     صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! याद रखिये ! जो अपने बड़ों बिल ख़ुसूस वालिदैन को नाराज़ करता है, उन का दिल दुखाता है, उन की इ़ज़्ज़त नहीं करता और उन के साथ बुरा सुलूक करता है, तो ऐसा शख़्स सख़्त गुनाहगार और दुन्या व आख़िरत में अ़ज़ाब का ह़क़दार हो जाता है और ऐसे शख़्स को मुआ़शरे में भी इ़ज़्ज़त की निगाह से नहीं देखा जाता । याद रखिये ! वालिदैन से निस्बत की वज्ह से दादा, दादी, नाना, नानी अल ग़रज़ ! हर बुज़ुर्ग का भी एह़तिराम हमें करना चाहिये क्यूंकि इस्लामी मुआ़शरा बूढ़ों और कमज़ोरों के ह़ुक़ूक़ का भी भरपूर दिफ़ाअ़ करता है । इस्लाम में बूढ़ों को बोझ समझ कर घर से निकाल देने और उन्हें किसी "ओल्ड हाउस (Old House)" में जम्अ़ करवा देने का कोई तसव्वुर नहीं । इस्लाम की येह ख़ुसूसिय्यत है कि इस नें जवानों को बूढ़ों के साथ अदबो एह़तिराम से पेश आने और उन की इ़ज़्ज़त व मक़ाम की ह़िफ़ाज़त करने की तरग़ीब दी है । पहले ज़माने में जब कोई नौजवान किसी बूढ़े आदमी के आगे चलता था, तो अल्लाह पाक उसे (उस की बे अदबी की वज्ह से) ज़मीन में धंसा देता था । (روح البیان،۹/۶۲)

ह़ज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिक رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ रिवायत फ़रमाते हैं, सय्यिदे आ़लम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : जो जवान किसी बूढ़े की उस की उ़म्र की वज्ह से ता'ज़ीमो तकरीम करे, इस के बदले में अल्लाह करीम किसी के ज़रीए़ उस की इ़ज़्ज़त बढ़ाता है ।

(ترمذی ، کتاب البر والصلۃ ، باب ما جاء فی اجلال الکبیر ، ج۳، رقم ۲۰۲۹، ص۴۱۱)

लिहाज़ा हमें चाहिये कि हम अपने बड़ों का अदब करें और उन का हर जाइज़ ह़ुक्म मानें ताकि दुन्या में इ़ज़्ज़त पाने और आख़िरत की रुस्वाई से ख़ुद को बचाने में कामयाब हो सकें । हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن अपने साथ तअ़ल्लुक़ व मह़ब्बत रखने वालों को बड़ों के साथ अदबो एह़तिराम से पेश आने और उन की इ़ज़्ज़त करने की नसीह़त फ़रमाते थे । चुनान्चे,

बड़ों का अदब करने की नसीह़त

          ह़ज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म अबू ह़नीफ़ा, नो'मान बिन साबित رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ के एक शागिर्द, ह़ज़रते सय्यिदुना यूसुफ़ बिन ख़ालिद बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने इ़ल्मे दीन से फ़राग़त के बा'द जब आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ से अपने शहर बसरा जाने की इजाज़त त़लब की, तो आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने फ़रमाया : कुछ दिन ठहरो ताकि मैं तुम्हें उन ज़रूरी कामों के बारे में वसिय्यत करूं कि लोगों के साथ मुआ़मलात करने, अहले इ़ल्म के मर्तबे पहचानने, नफ़्स की इस्लाह़ और लोगों की निगेहबानी