Book Name:Baron Ka Ihtiram Kejiye
(Topics) के बारे में मुख़्तलिफ़ सुवालात करते हैं और शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ उन्हें ह़िक्मत से भरपूर और इ़श्के़ रसूल में डूबे हुवे जवाबात से नवाज़ते हैं ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ मजलिसे मदनी मुज़ाकरा के तह़्त शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के इन अ़त़ा कर्दा दिलचस्प और इ़ल्मो ह़िक्मत से भरपूर मदनी फूलों की ख़ुश्बू से दुन्या भर के मुसलमानों को महकाने के लिये इन मदनी मुज़ाकरों को तह़रीरी रिसालों और मेमोरी कार्डज़ (Memory Cards) की सूरत में पेश करने की कोशिशें जारी हैं । अल्लाह करीम मजलिसे मदनी मुज़ाकरा को मज़ीद बरकतें अ़त़ा फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इस्लाम ने वालिदैन, असातिज़ए किराम, बड़े बहन भाई, पीरो मुर्शिद और दीगर बुज़ुर्गों के साथ साथ क़रीबी रिश्तेदारों के ह़ुक़ूक़ व आदाब भी बयान फ़रमाए हैं । क़रीबी रिश्तेदारों से तअ़ल्लुक़ात उ़मूमन वालिदैन के सबब होते हैं और इन रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक करना भी गोया वालिदैन के अदबो एह़तिराम की एक सूरत है । रिश्तेदारों के एह़तिराम के लिये येही ज़रूरी नहीं कि इन के सामने निगाहें झुकाई जाएं, हाथ चूमे जाएं बल्कि इन के साथ अच्छा सुलूक करना, रिश्ता तोड़ने से बाज़ रहना भी रिश्तेदारों का एह़तिराम कहलाता है ।
अल्लाह करीम पारह 4, सूरतुन्निसा की आयत नम्बर 1 में रिश्तेदारों के ह़ुक़ूक़ अदा करने का ह़ुक्म इरशाद फ़रमाता है :
وَ اتَّقُوا اللّٰهَ الَّذِیْ تَسَآءَلُوْنَ بِهٖ وَ الْاَرْحَامَؕ-اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلَیْكُمْ رَقِیْبًا(۱)(پارہ:۴، النساء:۱)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अल्लाह से डरो जिस के नाम पर एक दूसरे से मांगते हो और रिश्तों (को तोड़ने से बचो), बेशक अल्लाह तुम पर निगेहबान है ।
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इस आयते करीमा के तह़्त इरशाद फ़रमाते हैं : मुसलमानों पर जैसे नमाज़, रोज़ा, ह़ज, ज़कात वग़ैरा ज़रूरी है, ऐसे ही क़राबत (या'नी रिश्तेदारों) के ह़क़ अदा करना भी निहायत ज़रूरी है । मज़ीद इरशाद फ़रमाते हैं : अपने अ़ज़ीज़ों, क़रीबों (या'नी रिश्तेदारों) पर अच्छा सुलूक बहुत ही मुफ़ीद (या'नी फ़ाइदे मन्द) है, दुन्या में भी, आख़िरत में भी, इस से ज़िन्दगी, मौत, आख़िरत सब संभल जाती है । (तफ़्सीरे नई़मी, 4 / 455, 456)
सदरुश्शरीआ़, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आ'ज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : सारी उम्मत का इस पर इत्तिफ़ाक़ है कि सिलए रेह़म (या'नी रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक करना) वाजिब है और क़त़्ए़ रेह़म (या'नी रिश्ता काटना) ह़राम है । मज़ीद फ़रमाते हैं : रिश्तेदारों से ह़ुस्ने सुलूक (या'नी अच्छा सुलूक करने) की मुख़्तलिफ़ सूरतें हैं, मसलन उन को हदिय्या व तोह़्फ़ा देना वग़ैरा और अगर उन को किसी बात में तुम्हारी इमदाद की ज़रूरत हो, तो इस काम में उन की मदद करना, उन्हें सलाम करना, उन की मुलाक़ात को जाना, उन के पास उठना, बैठना,