Baron Ka Ihtiram Kejiye

Book Name:Baron Ka Ihtiram Kejiye

पीरो मुर्शिद का अदब किया जा सकता है ! येही वज्ह है कि उन्हें अपने पीरो मुर्शिद का भरपूर फै़ज़ मिलता था । याद रखिये ! पीरो मुर्शिद की ता'ज़ीमो तौक़ीर और उन का अदबो एह़तिराम बजा लाना भी हर मुरीद पर लाज़िम है । वालिदैन, असातिज़ा और बड़े भाई का मक़ाम और इन की अहम्मिय्यत भी अपनी जगह मगर पीरो मुर्शिद वोह अ़ज़ीम शख़्सिय्यत है कि जिस की सोह़बत की बरकत से ईमान की सलामती का ज़ेहन नसीब होता है, बुरे अ़क़ाइद की पहचान होती है, ज़िन्दगी का मक़्सद मा'लूम होता है, गुनाहों से बेज़ारी और नेकियों में रग़बत नसीब होती है, लोगों के दिलों में इ़ज़्ज़त क़ाइम हो जाती है, बात़िन की सफ़ाई होती है, दिल में ख़ौफे़ ख़ुदा व इ़श्के़ मुस्त़फ़ा बेदार होता है, दुन्या व आख़िरत बेहतर हो जाती है । अल ग़रज़ ! पीरो मुर्शिद के अपने मुरीदीन पर बे शुमार एह़सानात होते हैं । लिहाज़ा अगर कोई ख़ुश नसीब, मुर्शिदे कामिल के दामने करम से वाबस्ता हो कर मुरीद होने की सआ़दत पा ले, तो उसे चाहिये कि अपने मुर्शिद से फै़ज़ पाने के लिये अदब का पैकर बना रहे । जो मुरीदीन दिलो जान से अपने पीरो मुर्शिद का अदब करते हैं, उन के आदाब व ह़ुक़ूक़ में सुस्ती नहीं करते, तो ऐसे सआ़दत मन्द मुरीदीन ही तरक़्क़ी की मनज़िलें त़ै करते और पीरो मुर्शिद के प्यारे, मह़बूब और मन्ज़ूरे नज़र बन कर उभरते हैं । पीरो मुर्शिद के एह़सानात व ह़ुक़ूक़ किस क़दर ज़ियादा हैं और उन का अदबो एह़तिराम कितना ज़रूरी है, इस का अन्दाज़ा बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के इन इरशादात से लगाइये । चुनान्चे,

          ह़ज़रते सय्यिदुना ज़ुन्नून मिसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब कोई मुरीद अदब का ख़याल नहीं रखता, तो वोह लौट कर वहीं पहुंच जाता है, जहां से चला था । (ر سالہ قشیریہ، باب الادب ، ص ۳۱۹) ह़ज़रते ख़्वाजा क़ुत़्बुद्दीन बख़्तियार काकी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ से जब येह अ़र्ज़ की गई कि पीर का मुरीद पर किस क़दर ह़क़ है ? तो आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने इरशाद फ़रमाया : अगर कोई मुरीद उ़म्र भर ह़ज की राह में पीर को सर पर उठाए रखे, तो भी पीर का ह़क़ अदा नहीं हो सकता । (हश्त बिहिश्त, स. 397)

          ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम अ़ब्दुल वह्हाब शा'रानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मुरीद की शान येह है कि कभी उस के दिल में येह ख़याल पैदा न हो कि उस ने अपने मुर्शिद के एह़सानात का बदला चुका दिया है, अगर्चे अपने मुर्शिद की हज़ार साल ख़िदमत करे और उस पर लाखों रुपये भी ख़र्च करे क्यूंकि जिस मुरीद के दिल में इतनी ख़िदमत और इतने ख़र्च के बा'द येह ख़याल आया कि उस ने मुर्शिद का कुछ ह़क़ अदा कर दिया है, तो वोह त़रीक़त के रास्ते से निकल जाएगा, या'नी पीर के फै़ज़ से उस का कोई तअ़ल्लुक़ बाक़ी न रहेगा ।

(الانوار القدسیۃ، الجزء الثانی، ص ۲۷)

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि मुर्शिद का अदबो एह़तिराम कितनी बड़ी ने'मत है कि जिसे येह ने'मत नसीब हो जाती है, उस के वारे ही नियारे हो जाते हैं । मौजूदा ज़माने में अगर आप किसी बा अदब मुरीद का मक़ाम देखना चाहते हैं, तो शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की ज़ाते बा बरकात हमारे सामने है । आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने अपने पीरो मुर्शिद, सय्यिदी क़ुत़्बे मदीना, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना ज़ियाउद्दीन अह़मद मदनी