Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten

Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten

ईमान में इज़ाफे़ का सबब और ईमान की जड़ है । इस बात को यूं समझिये कि अगर किसी दरख़्त की जड़ ही कट जाए, तो वोह दरख़्त सूख जाता और उस पर लगे हुवे फल और फूल गल सड़ के झड़ जाते हैं । इसी त़रह़ ता'ज़ीमे मुस्त़फ़ा, ईमान के पौदे की जड़ की है़सिय्यत रखती है, इस के बिग़ैर ईमान का पौदा भी हरा भरा नहीं रह सकता और नेक आ'माल की सूरत में उस पर लगे हुवे फल और फूल ज़ाएअ़ हो जाते हैं । लिहाज़ा अपनी नेकियों को बाक़ी रखने और ईमान के दरख़्त को बढ़ाने के लिये अदबे रसूल को लाज़िम समझिये । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان ने ता'ज़ीमे मुस्त़फ़ा की ऐसी दास्तानें तह़रीर फ़रमाईं कि इस की मिसाल मिलना ना मुमकिन है । आइये ! शम्ए़ रिसालत के उन परवानों के इ़श्क़े मुस्त़फ़ा के चन्द ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़त सुनती हैं ।

1.     रिवायत में है कि ह़ुज़ूरे अन्वर, शहनशाहे बह़रोबर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के सह़ाबा عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان, कमाले अदबो एह़तिराम की वज्ह से आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का दरवाज़ा नाख़ुनों से खटखटाते थे । (شرح شفا،۲/۷۱ )

2.     इसी त़रह़ सुल्हे़ हु़दैबिय्या के साल क़ुरैश ने ह़ज़रते सय्यिदुना उ़रवह बिन मस्ऊ़द رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ को (जो अभी ईमान न लाए थे) शहनशाहे दो आ़लम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के पास भेजा । उन्हों ने देखा कि आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ जब वुज़ू फ़रमाते, तो सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان वुज़ू का पानी ह़ासिल करने के लिये इस क़दर तेज़ी से बढ़ते कि यूं मा'लूम होता जैसे एक दूसरे से लड़ पड़ेंगे । जब लुआ़बे मुबारक डालते या नाक साफ़ करते, तो सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان उसे हाथों में ले कर (उस से बरकतें ह़ासिल करने के लिये) अपने चेहरे और जिस्म पर मल लेते, आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ उन्हें कोई हु़क्म देते, तो फ़ौरन ह़ुक्म पर अ़मल करते, जब आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ गुफ़्तगू फ़रमाते, तो वोह ख़ामोश रहते और ता'ज़ीमे मुस्त़फ़ा के सबब आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की त़रफ़ आंख उठा कर न देखते । जब ह़ज़रते सय्यिदुना उ़रवह बिन मस्ऊ़द رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ अहले मक्का के पास वापस गए, तो उन से कहा : ऐ क़ुरैश की जमाअ़त ! मैं कै़सरो किसरा और नज्जाशी (जैसे बादशाहों) के दरबारों में भी गया हूं लेकिन ख़ुदा पाक की क़सम ! मैं ने किसी बादशाह की उस की क़ौम में ऐसी शानो शौकत नहीं देखी, जैसी शान (ह़ज़रते) मुह़म्मदे (मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) की उन के सह़ाबा (عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان) में देखी है ।

( شفا،فصل فی عادة  الصحابة فی تعظیمه ،۲/۳۸)

3.     एक बार हु़ज़ूर सरापा नूर, शाहे ग़य्यूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के चचा ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ से पूछा गया : اَنْتَ اَکْبَرُ اَمْ رَسُوْلُ اللہ؟ आप  बडे़ हैं या रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ बडे़ हैं ? इरशाद फ़रमाया :     ہُوَ اَکْبَرُ مِنِّیْ وَاَنَا کُنْتُ قَبْلَہٗ बड़े तो वोही हैं, बस पैदा मैं उन से पहले हुवा हूं ।