Faizan e Mushkil Kusha

Book Name:Faizan e Mushkil Kusha

इस्लामी भाई (जो मस्जिद के दरवाज़े के क़रीब खड़े थे उन्हों) ने उन को दर्स में शिर्कत की दा'वत दी, तो वोह दर्से फै़ज़ाने सुन्नत में बैठ गए फिर

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उन्हों ने इस्लामी भाइयों की इनफ़िरादी कोशिश से मद्रसतलु मदीना (बालिग़ान) में पढ़ना शुरूअ़ कर दिया । हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शिर्कत की । जहां उन के जज़्बे को मदीने के 12 चांद लग गए, चन्द हफ़्तों बा'द अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ का ब ज़रीआ टेलीफ़ोन बयान रिले हुवा, बयान के बा'द अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने इजतिमाई़ तौबा और बैअ़त करवाई, तो वोह इस्लामी भाई भी गुनाहों से तौबा कर के अ़त्त़ारी बन गए फिर जूं जूं वक़्त गुज़रता गया वोह मदनी माह़ोल में रचते बस्ते गए । मदनी माह़ोल की बरकत से उन को फ़िक़्ही मसाइल से दिलचस्पी हो गई, तो उन्हों ने इ़ल्मे दीन सीखने के लिये 1999 में जामिअ़तुल मदीना (बाबुल मदीना) में दाख़िला ले लिया और 2005 में आलिमे दीन बनने पर मीठे मीठे मुर्शिदे करीम, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के हाथों दस्तारे फ़ज़ीलत के त़ौर पर सब्ज़ सब्ज़ इ़मामा शरीफ़ बांधवाने का शरफ़ मिल गया ।

यक़ीनन मुक़द्दर का वोह है सिकन्दर

जिसे ख़ैर से मिल गया मदनी माह़ोल

दुआ है येह तुझ से दिल ऐसा लगा दे

न छूटे कभी भी ख़ुदा मदनी माह़ोल

(वसाइले बख़्शिश मुरम्मम, स. 647)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!                             صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

फ़रामीने शेरे ख़ुदा

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! ह़ज़रते सय्यिदुना अ़लिय्युल मुर्तज़ा, शेरे ख़ुदा کَرَّمَ اللّٰہُ تَعَالٰی وَجْھَہُ الْکَرِیْم ने इ़ल्मो ह़िक्मत से भरपूर ऐसे ऐसे नसीह़त आमोज़ मदनी फूल इरशाद फ़रमाए हैं कि अगर हम इन पर अ़मल करें, तो दुन्या व आख़िरत में फ़लाह़ो कामरानी हमारा मुक़द्दर बन सकती है ।