Book Name:Buri Sohbat Ka Wabal
फ़रमान और न जाने कैसी कैसी बुरी ख़स्लतों के आ़दी बन जाते हैं और वालिदैन व ख़ानदान का नाम बदनाम करते हैं । लिहाज़ा वालिदैन को चाहिए कि वोह अपने बच्चों की बेहतर तालीम के साथ साथ तरबियत के लिए भी वक़्त निकालें और वक़्तन फ़ वक़्तन उन्हें अच्छी सोह़बत के फ़वाइद और बुरे दोस्तों की सोह़बत के नुक़्सानात बता कर उन की दुन्या व आख़िरत संवारने और उन्हें मुआ़शरे का मुअ़ज़्ज़ज़ फ़र्द बनाने में अपना किरदार अदा करें । जैसा कि एक समझदार बाप को जब अपने बच्चे के बुरी सोह़बत में मुब्तला होने का इ़ल्म हुवा, तो उस ने ला परवाई का मुज़ाहरा करने के बजाए उसे किस त़रह़ समझाने की कोशिश की । आइए ! इस से मुतअ़ल्लिक़ एक ह़िकायत सुनिए और अ़मल की कोशिश भी कीजिए । चुनान्चे,
नेक घराने का एक बच्चा बुरे दोस्तों की सोह़बत में उठने, बैठने लगा, उस के वालिद साह़िब को येह बात पता चली, तो उन्हों ने उसे समझाया कि बुरों की सोह़बत तुम्हें भी कहीं बुरा न बना दे । उस ने येह केह कर टाल दिया कि अब्बूजान ! आप फ़िक्र न कीजिए, मैं उन जैसा नहीं बनूंगा । वालिदे मोह़तरम ने अपने बेटे को अ़मली त़ौर पर समझाने का इरादा कर लिया और एक दिन घर में बहुत सारे आलू बुख़ारे (Prunes) ले आए, उस में से कुछ आलू बुख़ारे घरवालों ने खा लिए । जब बाक़ी आलू बुख़ारे रखने लगे, तो बेटे ने कहा : अब्बूजान ! इन में एक गला, सड़ा आलू बुख़ारा भी है, उसे निकाल दीजिए । वालिद साह़िब बोले : अभी रेहने दो, कल देखेंगे । दूसरे दिन जब बाप, बेटे ने आलू बुख़ारे देखे, तो गले, सड़े आलू बुख़ारे के क़रीब वाले आलू बुख़ारे भी ख़राब हो चुके थे । अब वालिद साह़िब ने बेटे को समझाया : देखा बेटा ! सोह़बत का कितना असर होता है ! एक सड़े हुवे आलू बुख़ारे की सोह़बत से दूसरे अच्छे वाले आलू बुख़ारे भी ख़राब हो गए । बच्चे की समझ में आ गया और उस ने बुरे दोस्तों की सोह़बत में बैठने से तौबा कर ली । (दूध पीता मदनी मुन्ना, स. 27, बि तग़य्यरिन क़लील)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने देखा कि एक अ़क़्लमन्द बाप ने अपने बच्चे को बुरी सोह़बत से रोकने का कैसा प्यारा त़रीक़ा इख़्तियार किया कि उस ने एक नन्हे ज़ेह्न के मुत़ाबिक़ आ़म सी मिसाल के ज़रीए़ उसे बुरी सोह़बत के नुक़्सान से आगाह किया, तो बेटे ने भी ब आसानी अपने बाप की बात येह सोच कर क़बूल कर ली कि जिस त़रह़ इन गले, सड़े आलू बुख़ारों के दरमियान रेह कर अच्छे आलू बुख़ारे भी ख़राब हो गए, तो कहीं ऐसा न हो कि बुरे दोस्तों की सोह़बत की नुह़ूसत के सबब मैं भी उन जैसा बन जाऊं ! ग़ौर कीजिए कि एक त़रफ़ तो ऐसे ख़ुश नसीब वालिदैन का शानदार किरदार हमारे सामने है जबकि दूसरी जानिब हमारे मुआ़शरे में ऐसे नादान भी हैं जो अपनी औलाद को अच्छी सोह़बत में बैठने की तरग़ीब दिलाना तो दूर की बात है, अच्छी सोह़बत में बैठने से ही रोकते हैं फिर बसा अवक़ात येही औलाद जब बुरी सोह़बत का शिकार हो कर बिगड़ जाती है, तो वालिदैन अपने किए पर कफे़ अफ़्सोस मलते रेह जाते हैं (यानी पछता रहे होते हैं) मगर "अब पछताए क्या होवत जब चिडि़यां चुग गईं खेत" । लिहाज़ा फिर लाख कोशिशों के बा वुजूद भी ऐसी औलाद राहे रास्त पर नहीं आती । चुनान्चे,