Book Name:Buri Sohbat Ka Wabal
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! "तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान" जिल्द 3, सफ़ह़ा 134 पर लिखा है : बद मज़हबों की मेह़फ़िल में जाना और उन की तक़रीर सुनना नाजाइज़ व ह़राम और अपने आप को बद मज़हबी व गुमराही पर पेश करने वाला काम है । उन की तक़ारीर आयाते क़ुरआनिय्या पर मुश्तमिल हों ख़्वाह अह़ादीसे मुबारका पर, अच्छी बातें चुनने का ज़ोम (गुमान) रख कर भी उन्हें सुनना हरगिज़ जाइज़ नहीं, ऐ़न मुमकिन बल्कि अक्सर त़ौर पर वाके़अ़ है कि गुमराह शख़्स अपनी तक़रीर में क़ुरआनो ह़दीस की शर्ह़ व वज़ाह़त की आड़ में ज़रूर कुछ बातें अपनी बद मज़हबी की भी मिला दिया करते हैं और क़वी ख़द्शा (बहुत ख़त़रा) बल्कि वुक़ूअ़ का मुशाहदा है कि वोह बातें तक़रीर सुनने वाले के ज़ेह्न में रासिख़ हो कर दिल में घर कर जाती हैं । येही वज्ह है कि गुमराह व बे दीन की तक़रीर व गुफ़्तगू सुनने वाला उ़मूमन ख़ुद भी गुमराह हो जाता है । हमारे अस्लाफ़ अपने ईमान के बारे में बेह़द मोह़तात़ हुवा करते थे, लिहाज़ा बा वुजूद येह कि वोह अ़क़ीदे में इन्तिहाई मुतसल्लिब (पुख़्ता) होते फिर भी वोह किसी बद मज़हब की बात सुनना हरगिज़ गवारा न फ़रमाते थे, अगर्चे वोह सौ बार यक़ीन दहानी कराता कि मैं सिर्फ़ क़ुरआनो ह़दीस बयान करूंगा ।
हफ़्तावार रिसाले का मुत़ालआ़ करने / सुनने की तरग़ीब
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बुरी सोह़बत से बचने के जहां और भी कई ज़राएअ़ हैं, वहीं एक ज़बरदस्त ज़रीआ़ मक्तबतुल मदीना से जारी कर्दा अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ और इस्लामिक रीसर्च सेन्टर (अल मदीनतुल इ़ल्मिय्या) की कुतुबो रसाइल का मुत़ालआ़ करना भी है । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ आ़शिक़ाने रसूल को हर हफ़्ते एक रिसाले का मुत़ालआ़ करने और सुनने की न सिर्फ़ तरग़ीब इरशाद फ़रमाते हैं बल्कि रिसाले का मुत़ालआ़ करने और सुनने वालों और वालियों को दुआ़ओं से भी नवाज़ते हैं । लिहाज़ा आप भी हिम्मत कीजिए और अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की दुआ़ओं में से ह़िस्सा पाने के लिए अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के अ़त़ा कर्दा हफ़्तावार रिसाले का मुत़ालआ़ करने या सुनने का मामूल बना लीजिए । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ "72 नेक आमाल" नामी रिसाले में हफ़्तावार रिसाले का मुत़ालआ़ करने / सुनने की तरग़ीब पर मुश्तमिल एक नेक अ़मल भी मौजूद है । चुनान्चे, नेक अ़मल नम्बर 63 है : क्या इस बार का हफ़्तावार रिसाला पढ़ या सुन लिया ?
अल्लाह करीम हम सब को पाबन्दी के साथ हफ़्तावार रिसाला पढ़ने या सुनने की तौफ़ीक़ नसीब फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बुरी सोह़बत में चाहे बड़ा मुब्तला हो या छोटा, उसे इस के नुक़्सानात ज़रूर पहुंचते हैं मगर बड़ों के मुक़ाबले में बच्चों के ह़क़ में बुरी सोह़बत इन्तिहाई ख़त़रनाक साबित होती है क्यूंकि इन्हें कम उ़म्री में अच्छे, बुरे की तमीज़ नहीं होती, अगर बचपन ही से इन की तरबियत न की जाए, तो येह बड़े हो कर आवारा, ज़िद्दी, सूद ख़ोर, रिश्वत ख़ोर, बद मज़हब, बे नमाज़ी, जुवारी, शराबी, बे ह़या, फै़शन परस्त, फ़िल्में, ड्रामों के शैदाई, मां-बाप के ना