Book Name:Buri Sohbat Ka Wabal
उस मुसलमान के बारे में तुम्हारा क्या ख़याल है जो औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن और नेक बन्दों से मह़ब्बत करने वाला और उन की सोह़बत से फै़ज़याब होने वाला है ? बल्कि इस आयत में उन मुसलमानों के लिए तसल्ली है जो किसी बुलन्द मक़ाम पर फ़ाइज़ नहीं । (सिरात़ुल जिनान, पा. 15, अल कह्फ़, तह़्तुल आयत : 18, 5 / 550) यानी उन के लिए तसल्ली है कि वोह अपनी इस मह़ब्बतो अ़क़ीदत की वज्ह से अल्लाह पाक की बारगाह में काम्याब होंगे । (सिरात़ुल जिनान, पा. 15, अल कह्फ़, तह़्तुल आयत : 18, 5 / 550)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि इन्सान हो या जानवर, अच्छी सोह़बत से फै़ज़याब होने वाला कोई भी मह़रूम नहीं रेहता बल्कि उस पर रब्बे करीम का ख़ास फ़ज़्लो एह़सान होता है और उस का बेड़ा पार हो जाता है । इस पुर फ़ितन दौर में अच्छी सोह़बत पाने का एक ज़रीआ़ दावते इस्लामी का मुश्कबार दीनी माह़ोल है । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इस दीनी माह़ोल में आ़शिक़ाने रसूल की सोह़बत से बहुत से बिगड़े हुवे लोगों की इस्लाह़ का सामान हो चुका है और तौबा के बाद इस दीनी मक़्सद के तह़्त ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं : "मुझे अपनी और सारी दुन्या के लोगों की इस्लाह़ की कोशिश करनी है, اِنْ شَآءَ اللہ" लिहाज़ा हम सब भी इस दीनी मक़्सद पर अ़मल करने के लिए दावते इस्लामी के दीनी कामों में बढ़ चढ़ कर ह़िस्सा लें । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ दावते इस्लामी पूरी दुन्या में ख़िदमते दीन के 109 से ज़ाइद शोबाजात में नेकी की दावत आ़म करने में मसरूफे़ अ़मल है, इन्ही में से एक शोबा "इज़्दियादे ह़ुब" भी है ।
नेक अ़मल नम्बर 65 को बा क़ाइ़दा तन्ज़ीमी त़ौर पर अ़मली जामा पेहनाते हुवे वोह पुराने इस्लामी भाई जो पेहले आते थे मगर अब नहीं आते, उन्हें दीनी माह़ोल में फ़आ़ल कर के "मस्जिद भरो तह़रीक" में शामिल करना, उन से वक़्त ले कर इनफ़िरादी त़ौर पर दुकान, घर या दफ़्तर जा कर मुलाक़ात करना, उन्हें सुन्नतों भरे इजतिमाआ़त में शिर्कत की दावत देना, मदनी मुज़ाकरे देखने / सुनने का ज़ेह्न देना, इजतिमाई़ एतिकाफ़ और कोर्सिज़ (इस्लाह़े आमाल कोर्स, फै़ज़ाने नमाज़ कोर्स वग़ैरा) करने की तरग़ीब दिलाना, क़ाफ़िलों में सफ़र करवाना, उन के घरों में मदनी ह़ल्के़ की तरकीब करना, उन्हें मद्रसतुल मदीना बालिग़ान में शिर्कत करवाना, उन की ख़ुशी, ग़मी, बीमारी व फ़ौतगी वग़ैरा के मुआ़मलात में शरीक होना और मुश्किलात में अवरादे अ़त़्त़ारिया दिलवाना वग़ैरा इस शोबे के मक़ासिद में शामिल है । अल्लाह करीम शोबा "इज़्दियादे ह़ुब" को काम्याबियों से हम कनार फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
तरबियते औलाद से मुतअ़ल्लिक़ चन्द आदाब
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आइए ! रिसाला "फै़ज़ाने मदनी मुज़ाकरा क़िस्त़ : 8" सफ़ह़ा नम्बर 69 से बच्चों की तरबियत के चन्द आदाब सुनते हैं : ٭ औलाद को ना फ़रमान और बाग़ी बनाने में बसा अवक़ात ख़ुद वालिदैन का अपना भी किरदार होता है, इस लिए कि वालिदैन की अक्सरिय्यत ख़ुद तरबियत याफ़्ता नहीं होती, येही वज्ह है कि वोह औलाद की भी सह़ीह़ मानों में तरबियत नहीं कर