Book Name:Sadqa ke Fawaid
बनात की त़ालिबात व मोअ़ल्लिमात के इ़लावा कसीर इस्लामी बहनें भी पीर शरीफ़ का नफ़्ल रोज़ा रखने की सआ़दत ह़ासिल करती हैं । आइए ! नफ़्ल रोज़ों की फ़ज़ीलत पर दो फ़रामीने मुस्तफ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم सुनते हैं :
1. इरशाद फ़रमाया : अगर कोई शख़्स एक दिन नफ़्ली रोज़ा रखे फिर उसे ज़मीन भर सोना भी दे दिया जाए, तब भी इस का सवाब क़ियामत के दिन ही पूरा होगा । (مجمع الزوائد ، کتاب الصیام ، باب فی فضل الصوم ، ۳ / ۴۲۳ ، حدیث : ۵۰۹۲)
2. इरशाद फ़रमाया : जिस ने لَآاِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ कहा और इसी पर उस का ख़ातिमा हुवा, तो वोह जन्नत में दाख़िल होगा । जो अल्लाह पाक की रिज़ा चाहते हुवे किसी दिन रोज़ा रखे फिर इसी पर उस का ख़ातिमा हो जाए, तो वोह जन्नत में दाख़िल होगा । जो अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए सदक़ा करे और इसी पर उस का ख़ातिमा हो, तो वोह जन्नत में दाख़िल होगा । (مسند احمد بن حنبل ، ۹ / ۹۰ ، حدیث : ۲۳۳۷۴)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! रजबुल मुरज्जब का महीना जारी है, इस महीने में भी नफ़्ल रोज़े रखने की बड़ी बरकतें हैं, लिहाज़ा येह बरकतें व फ़ज़ाइल पाने के लिए इस महीने के अक्सर दिन रोज़ा रख कर गुज़ारने की कोशिश कीजिए । अह़ादीसे मुबारका में रजब के नफ़्ल रोज़ों के बहुत से फ़ज़ाइल बयान किए गए हैं । चुनान्चे, रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : जन्नत में एक नहर है जिसे "रजब" कहा जाता है, जो दूध से ज़ियादा सफे़द और शह्द से ज़ियादा मीठी है । तो जो कोई रजब का एक रोज़ा रखे, तो अल्लाह पाक उसे उस नहर से सैराब करेगा । (شُعَبُ الایمان ، ۳ / ۳۶۷ ، حدیث۳۸۰۰)
अल्लाह पाक हमें दीगर नफ़्ल रोज़ों के साथ साथ रजब शरीफ़ के रोज़े रखने की भी तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हम सदक़ा व ख़ैरात करने से मुतअ़ल्लिक़ सुन रहे थे । यक़ीनन इख़्लास के साथ राहे ख़ुदा में ख़र्च किया जाने वाला माल ज़ाएअ़ नहीं जाता । राहे ख़ुदा में ख़र्च करते वक़्त इस बात का भी ख़याल रखना चाहिए कि जो चीज़ आप को सब से ज़ियादा पसन्दीदा हो, उसे सदक़ा व ख़ैरात कीजिए कि इस का सवाब ज़ियादा है ।
बद क़िस्मती से सदक़ा व ख़ैरात करने में कन्जूसी का मुज़ाहरा किया जाता है या फिर ऐसी चीज़ सदक़ा की जाती है जो क़ाबिले इस्तिमाल नहीं रेहती, मसलन जब देखा कि रोटियों को फफूंदी लग चुकी है, सालन नाराज़ (यानी ख़राब) हो चुका है या नाराज़ (यानी ख़राब) होने के क़रीब है, तो किसी ग़रीब को भिजवा देते हैं, क़ुरबानी का गोश्त जब अपने इस्तिमाल का न रहे, तो बांध कर घर में काम करने वाली मासी को दे देते हैं, सैलाब से मुतास्सिर या आफ़त में मुब्तला लोगों को कम