Sadqa ke Fawaid

Book Name:Sadqa ke Fawaid

दोनों ह़िस्सेदारों को आ़जिज़ नहीं कर सकते, लिहाज़ा अपना माल राहे ख़ुदा में ख़र्च कर दो । बेशक अल्लाह पाक का फ़रमाने आ़लीशान है :

لَنْ  تَنَالُوا  الْبِرَّ  حَتّٰى  تُنْفِقُوْا  مِمَّا  تُحِبُّوْنَ  ﱟ )پ۴ ، اٰلِ عمران : ۹۲(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : तुम हरगिज़ भलाई को नहीं पा सकोगे जब तक राहे ख़ुदा में अपनी प्यारी चीज़ ख़र्च न करो ।

          इस आयते करीमा की तिलावत करने के बाद आप अपने ऊंटों की त़रफ़ इशारा कर के फ़रमाने लगे : मुझे मेरे माल में येह ऊंट सब से बढ़ कर पसन्द हैं, इस लिए मैं इन्हें ख़ैरात कर के अपने लिए आख़िरत में ज़ख़ीरा करना पसन्द करता हूं । (الزھد لہنادبن السری  ،   باب الطعام فی اللہ  ،  ۱ / ۳۴۸ ،  حديث  :  ۶۵۱)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! सदक़ा देने के फ़ज़ाइल और फ़वाइद की क्या ही बात है ! हमें भी इस दुन्या में रेह कर सदक़ा व ख़ैरात कर के अपनी आख़िरत को रौशन करने वाले काम करने की कोशिश करनी चाहिए । क्या ही अच्छा हो कि ग़रीबों, मिस्कीनों, यतीमों, बेवाओं, ह़ाजतमन्दों और रिश्तेदारों के साथ साथ हम अपने सदक़ात व चन्दा नेकी के कामों, मसाजिद, मदारिसुल मदीना और जामिआ़तुल मदीना की तामीर व तरक़्क़ी नीज़ दीने इस्लाम की सर बुलन्दी और इ़ल्मे दीन के फ़रोग़ की ख़ात़िर इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने वाले त़लबा व त़ालिबात के लिए दावते इस्लामी को दे कर अपनी आख़िरत बेहतर करें ।

          मन्क़ूल है : ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन मुबारक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ (जो इमामे आज़म अबू ह़नीफ़ा رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के ख़ास शागिर्द और फ़िक़्हे ह़नफ़ी के इमामों में से हैं) इ़ल्म वालों के साथ ख़ास त़ौर पर भलाई करते, उन से अ़र्ज़ की गई : आप सब के साथ एक सा मुआ़मला क्यूं नहीं रखते ? फ़रमाया : मैं अम्बियाए किराम عَلَیْھِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام और सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان के बाद उ़लमाए किराम के इ़लावा किसी के मक़ाम को बुलन्द नहीं जानता, एक भी आ़लिम का धियान अपनी ज़रूरिय्यात की वज्ह से बटेगा, तो वोह सह़ीह़ त़ौर पर ख़िदमते दीन न कर सकेगा और दीनी तालीम पर उस की दुरुस्त तवज्जोह न हो सकेगी, लिहाज़ा उन्हें इ़ल्मी ख़िदमत के लिए फ़ारिग़ करना अफ़्ज़ल है । (ज़ियाए सदक़ात, स. 172)

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! اَلْحَمْدُ لِلّٰہ आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी तब्लीग़े दीन के 108 से ज़ाइद शोबाजात में नेकी की दावत की धूमें मचाने में सरगर्मे अ़मल है । इस नाज़ुक दौर में कि जब बात़िल क़ुव्वतें चारों त़रफ़ से पूरी त़ाक़त के साथ मुसलमानों के ईमान को बरबाद करने और उन्हें गुमराही के गढ़े में गिराने की कोशिशों में मश्ग़ूल हैं, ऐसे में दावते इस्लामी उम्मीद की किरन बन कर चमकी और इस मदनी तह़रीक ने उम्मत की डूबती हुई किश्ती को सहारा देने, पूरी दुन्या में तालीमे क़ुरआनो सुन्नत को आ़म करने, नूरे क़ुरआन से सीनों को सरशार और उम्मते मुस्त़फ़ा को ख़्वाबे ग़फ़्लत से बेदार करने के जज़्बे के तह़्त मुख़्तसर अ़र्से में बहुत से मुल्कों और शहरों में बच्चों और बच्चियों के लिए हज़ारों मदारिस बनाम "मद्रसतुल मदीना" जब कि इस्लामी भाइयों और इस्लामी बहनों की तालीमो तरबियत के लिए जामिआ़त बनाम "जामिअ़तुल मदीना" की बुन्याद रखी, जहां पर उन्हें ज़ेवरे क़ुरआन व इ़ल्मे दीन नीज़ शरई़ और अख़्लाक़ी तरबियत से