Book Name:Narmi Kaisy Paida Karain
رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की इनफ़िरादी कोशिश ने तगूदार के दिल में इन्क़िलाब पैदा कर दिया, वोही तगूदार जो कल तक इस्लाम को मिटाने का इरादा किये हुवे था, आज इस्लाम का चाहने वाला बन चुका था । इसी बा अ़मल मुबल्लिग़ के हाथों तगूदार अपनी पूरी तातारी क़ौम समेत मुसलमान हो गया, उस का इस्लामी नाम "अह़मद" रखा गया । तारीख़ गवाह है कि एक मुबल्लिग़ के "मीठे बोल" की बरकत से तातारी ह़ुकूमत इस्लामी ह़ुकूमत से बदल गई । (ग़ीबत की तबाहकारियां, स. 155)
ऐ आ़शिक़ाने औलिया ! आप ने सुना कि हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن सामने वाले के कड़वे अन्दाज़ और सख़्त जुम्ले सुन कर भी कभी ग़ुस्से में न आते बल्कि सब्र व बरदाश्त से काम लेते हुवे अच्छे अख़्लाक़ का मुज़ाहरा फ़रमाते हैं, येही वज्ह है कि उन की बातें सामने वाले के दिल में उतर जाती हैं । याद रखिये ! मीठी ज़बान में ख़र्च कुछ नहीं होता है मगर इस से फ़ाइदा बहुत होता है जब कि सख़्त ज़बान इस्तिमाल करने में सरासर नुक़्सान ही नुक़्सान है । किसी ने क्या ख़ूब अनोखी बात कही कि "त़ोत़ा मिर्च खा कर भी मीठे बोल बोलता है और इन्सान मीठा खा कर भी कड़वी बातें करता है ।" येह ह़क़ीक़त है कि मिज़ाज के ख़िलाफ़ बात सुनने पर ग़ुस्सा आ ही जाता है मगर ऐसे में जोश से काम लेने के बजाए होश से काम लेते हुवे सब्र व बरदाश्त का दामन छोड़ने से कोई फ़ाइदा ह़ासिल नहीं होता । आइये ! इस बारे में अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की मुबारक सीरत का एक वाक़िआ़ सुनते हैं । चुनान्चे,
येह उन दिनों की बात है जब आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी का हफ़्तावार सुन्नतों भरा इजतिमाअ़ दावते इस्लामी के सब से पहले मदनी मर्कज़, गुलज़ारे ह़बीब मस्जिद, बाबुल मदीना में होता था । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ इजतिमाअ़ में शिर्कत के लिये इस्लामी भाइयों के साथ जब एक सिनेमा घर के क़रीब से गुज़रे, तो एक नौजवान जो फ़िल्म का टिकट लेने की ग़रज़ से क़ित़ार (Line) में खड़ा था, उस ने बुलन्द आवाज़ से अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ को मुख़ात़ब कर के कहा : मौलाना ! बड़ी अच्छी फ़िल्म लगी है, आ कर देख लो (مَعَاذَ اللّٰہ) । इस से पहले कि आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के साथ मौजूद इस्लामी भाई जज़्बात में आ कर कुछ करते, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने बुलन्द आवाज़ से सलाम किया और क़रीब पहुंच कर बड़ी ही नर्मी के साथ इनफ़िरादी कोशिश करते हुवे इरशाद फ़रमाया : बेटा ! मैं फ़िल्में नहीं देखता, अलबत्ता आप ने मुझे दावत पेश की, तो मैं ने सोचा कि आप को भी दावत पेश करूं, अभी اِنْ شَآءَ اللّٰہ गुलज़ारे ह़बीब मस्जिद में सुन्नतों भरा इजतिमाअ़ होगा, आप से शिर्कत की दरख़ास्त है, अगर आप अभी नहीं आ सकते, तो फिर कभी ज़रूर तशरीफ़ लाइयेगा । फिर आप ने उसे एक इ़त़्र की शीशी तोह़फ़े में पेश की । चन्द सालों बाद अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की बारगाह में एक