Ilm-e-Deen Kay Fazail

Book Name:Ilm-e-Deen Kay Fazail

लिये कुछ मालो अस्बाब भी जम्अ़ कर रखा था जो इन दोनों सआ़दत मन्द बेटों के इ़ल्म ह़ासिल करने के ज़माने में इन्हें बहुत काम आया । (اتّحاف السادۃ،مقدمۃ الکتاب،۱/۹ملخصاً)

          इसी त़रह़ हमारे ग़ौसे पाक ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बचपन में ही अपनी वालिदए मोह़्तरमा की इजाज़त से इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने के लिये बग़दाद पहुंचे थे । (بہجۃالاسرار،ذکر طریقہ، ص۱۶۷ ملخصا)

        'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ भी बचपन ही से इ़ल्मे दीन सीखते रहे यहां तक कि साढ़े चार साल की नन्ही सी उ़म्र में क़ुरआने करीम नाज़िरा मुकम्मल पढ़ने की ने'मत से फै़ज़याब हुवे और सिर्फ़ तेरह साल, दस माह, चार दिन की उ़म्र में तमाम राइज शुदा उ़लूम अपने वालिदे माजिद, ह़ज़रते मौलाना नक़ी अ़ली ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से ह़ासिल कर के सनदे फ़राग़त ह़ासिल कर ली । (फै़ज़ाने आ'ला ह़ज़रत, स. 85, 91)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! बयान कर्दा वाक़िआ़त से मा'लूम हुवा ! हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن अपनी औलाद को बचपन ही से इ़ल्मे दीन सिखाने में मश्ग़ूल कर दिया करते थे । हमें भी अपनी औलाद की मदनी तरबिय्यत करते हुवे उन्हें इ़ल्मे दीन सिखाने की कोशिश करनी चाहिये । अपनी औलाद की सुन्नतों के मुत़ाबिक़ तरबिय्यत करना इस लिये भी बहुत ज़रूरी है ताकि उन्हें नेक बना कर उस दोज़ख़ से बचाया जा सके जिस का ईंधन आदमी और पथ्थर हैं । अल्लाह करीम पारह 28, सूरतुत्तह़रीम की आयत नम्बर 6 में इरशाद फ़रमाता है :

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا قُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ اَهْلِیْكُمْ نَارًا وَّ قُوْدُهَا النَّاسُ وَ الْحِجَارَةُ عَلَیْهَا مَلٰٓىٕكَةٌ غِلَاظٌ شِدَادٌ لَّا یَعْصُوْنَ اللّٰهَ مَاۤ اَمَرَهُمْ وَ یَفْعَلُوْنَ مَا یُؤْمَرُوْنَ(۶)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ ईमान वालो ! अपनी जानों और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिस के ईंधन आदमी और पथ्थर हैं, उस पर सख़्ती करने वाले त़ाक़त वर फ़िरिश्ते मुक़र्रर हैं जो अल्लाह के ह़ुक्म की ना फ़रमानी नहीं करते और वोही करते हैं जो उन्हें ह़ुक्म दिया जाता है ।

          सदरुल अफ़ाज़िल, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ "ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान" में आयते मुबारका के इस ह़िस्से (یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا قُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ اَهْلِیْكُمْ نَارًا) के तह़त फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की फ़रमां बरदारी इख़्तियार कर के, इ़बादतें बजा ला कर, गुनाहों से बाज़ रह कर और घर वालों को नेकी की हिदायत और बदी (बुराई) से मुमानअ़त (मन्अ़) कर के उन्हें इ़ल्म व अदब सिखा कर (अपने आप को और अपने घर वालों को आग से बचाओ !)

          नबिय्ये अकरम, रसूले अ़रबो अ़जम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया है : तुम सब अपने मुतअ़ल्लिक़ीन के सरदार व ह़ाकिम हो और तुम में से हर एक से रोज़े क़ियामत उस की रइ़य्यत के बारे में पूछा जाएगा । (بخارِی،کتاب الجمعۃ،باب الجمعۃ فی القری والمدن ،۱/۳۰۹، حدیث :۸۹۳ )

          इस ह़दीसे पाक के तह़त शारेह़े बुख़ारी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मुफ़्ती मुह़म्मद शरीफ़ुल ह़क़ अमजदी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : "रइ़य्यत" से मुराद वोह है जो किसी की निगरानी में