Tilawat-e-Quran Aur Musalman

Book Name:Tilawat-e-Quran Aur Musalman

कई कई महीने (Months) गुज़र जाते हैं मगर हमारे घर तिलावत की बरकत से मह़रूम रहते हैं । आइये ! हम भी निय्यत करती हैं कि आज से इन अह़ादीसे मुबारका पर अ़मल करते हुवे, इन नेक सीरत लोगों की अदाओं को अपनाते हुवे हम ख़ुद भी क़ुरआने पाक पढ़ेंगी और दूसरी इस्लामी बहनों को भी क़ुरआने पाक पढ़ने की तरग़ीब दिलाएंगी ।

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ ! दा'वते इस्लामी आ़शिक़ाने रसूल की वोह मदनी तह़रीक है जिस के मदनी मक़्सद में फै़ज़ाने क़ुरआन को आ़म करने की तरग़ीब शामिल है, वोह मदनी मक़्सद क्या है ? आइये ! हम भी दोहरा लेती हैं : "मुझे अपनी और सारी दुन्या के लोगों की इस्लाह़ की कोशिश करनी है । اِنْ شَآءَ اللّٰہ" मुसलमान और क़ुरआने करीम साथ साथ हैं, क़ुरआने करीम की रहनुमाई के बिग़ैर कोई मन्ज़िल तक कैसे पहुंच सकता है ? क़ुरआने करीम की ता'लीम को भूल कर काम्याबी की उम्मीद कैसे रखी जा सकती है ? क़ुरआने करीम हिदायत का मर्कज़ है ।

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी मुख़्तलिफ़ अन्दाज़ से ता'लीमे क़ुरआन को आ़म करने की कोशिश कर रही है । ता'लीमे क़ुआन को आ़म करने के लिये एक अन्दाज़ येह भी है कि दुन्या के मुख़्तलिफ़ मुमालिक में अक्सर घरों के अन्दर तक़रीबन रोज़ाना हज़ारों मदारिस बनाम "मद्रसतुल मदीना बालिग़ात" भी लगाए जाते हैं, मद्रसतुल मदीना बालिग़ात में पढ़ने वालियों की ता'दाद तक़रीबन 63 हज़ार से ज़ाइद है ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          आ़शिक़ाने रसूल इस्लामी बहनो ! क़ुरआने अ़ज़ीम वोह मुबारक किताब है जिस में अल्लाह पाक ने बहुत से अह़कामात इरशाद फ़रमाए हैं, उन में बा'ज़ अह़काम वोह हैं जिन पर मुसलमानों को अ़मल करने, मसलन नमाज़ पढ़ने, ज़कात अदा करने, रमज़ानुल मुबारक के रोज़े रखने, त़ाक़त होने की सूरत में ह़ज अदा करने, वालिदैन के ह़ुक़ूक़ (Rights) अदा करने और उन के साथ अच्छा सुलूक करने, औ़रतों को शरई़ पर्दा करने, इस्लामी बहनों को सलाम करने, उन के साथ नर्मी इख़्तियार करने का ह़ुक्म दिया गया जब कि चोरी करने, बदकारी करने, सूद खाने, शराब पीने, झूट बोलने, नाजाइज़ लेन देन करने, बिला वज्ह किसी पर ग़ुस्सा करने, किसी को बुरे अल्क़ाबात से पुकारने के इ़लावा मज़ीद बहुत से बुरे कामों से बचने का ह़ुक्म दिया गया है । अल ग़रज़ ! इस पाकीज़ा किताब या'नी क़ुरआने करीम में उन तमाम चीज़ों का बयान मौजूद है जिन पर अ़मल करने की बरकत से मुसलमानों को न सिर्फ़ दुन्या में फ़ाइदा पहुंचता है बल्कि اِنْ شَآءَ اللّٰہ आख़िरत में भी इस का ढेरों सवाब मिलेगा । लिहाज़ा हमें चाहिये कि हम इन अह़कामात पर ख़ुश दिली के साथ पाबन्दी से अ़मल करें ताकि हमारी दुन्या व आख़िरत बेहतरीन हो जाए । पारह 8, सूरतुल अनआ़म की आयत नम्बर 155 में इरशादे बारी है :

وَ هٰذَا كِتٰبٌ اَنْزَلْنٰهُ مُبٰرَكٌ فَاتَّبِعُوْهُ وَ اتَّقُوْا لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَۙ(۱۵۵)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और येह बरकत वाली किताब है जिसे हम ने नाज़िल किया है, तो तुम इस की पैरवी करो और परहेज़गार बनो ताकि तुम पर रह़म किया जाए ।