Book Name:Tilawat-e-Quran Aur Musalman
बहनें अपने घर के मह़ारिम पर इनफ़िरादी कोशिश कर के उन्हें मदनी क़ाफ़िले में सफ़र की तरग़ीब दिलाने की निय्यत फ़रमा लीजिये ।
रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी जुमुआ़ में बा'ज़ लोग बा जमाअ़त क़ज़ाए उ़म्री पढ़ते हैं और येह समझते हैं कि उ़म्र भर की क़ज़ाएं इसी एक नमाज़ से अदा हो गईं, येह बात़िले मह़्ज़ है ।
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जुमुअ़तुल वदाअ़ के ज़ोहर व अ़स्र के दरमियान 12 रक्अ़त नफ़्ल दो, दो रक्अ़त की निय्यत से पढ़े और हर रक्अ़त में सूरतुल फ़ातिह़ा के बा'द एक बार आयतुल कुर्सी और तीन बार "قُل ھُوَ اللہُ اَحَد" और एक बार सूरतुल फ़लक़ और सूरतुन्नास पढ़े । इस का फ़ाइदा येह है कि जिस क़दर नमाज़ें इस ने क़ज़ा कर के पढ़ी होंगी, उन के क़ज़ा करने का गुनाह اِنْ شَآءَ اللّٰہ मुआ़फ़ हो जाएगा, येह नहीं कि क़ज़ा नमाज़ें इस से मुआ़फ़ हो जाएंगी, वोह तो पढ़ने से ही अदा होंगी । (इस्लामी बहनों की नमाज़, सफ़ह़ा : 155)
तमाम इस्लामी बहनें निय्यत फ़रमा लें कि जुमुअ़तुल वदाअ़ के दिन येह 12 नवाफ़िल अदा करेंगी, साथ ही जितनी नमाज़ें क़ज़ा हुईं उन का ह़िसाब लगा कर जल्द से जल्द अदा करने की कोशिश करेंगी ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد