Tilawat-e-Quran Aur Musalman

Book Name:Tilawat-e-Quran Aur Musalman

नसीब हो जाती है और बा'ज़ तो रमज़ान में भी इस की तिलावत बल्कि इस की ज़ियारत से मह़रूम रहती हैं और रमज़ानुल मुबारक में "टाइम पास" करने के लिये अपना क़ीमती वक़्त फ़ुज़ूल बैठकों, अख़्बारात का मुत़ालआ़ करने, फ़िल्में, ड्रामे या मूसीक़ी से भरपूर प्रोग्राम देखने, सुनने, मुल्की व सियासी ह़ालात और मेचिज़ पर तबसिरे करने और सुनने, मोबाइल या कम्प्यूटर पर गेम्ज़ खेलने में ज़ाएअ़ कर देती हैं । अगर येह अपना क़ीमती वक़्त इन फ़ुज़ूल मसरूफ़िय्यात में बरबाद करने के बजाए रोज़ाना कम अज़ कम एक पारह तिलावत करने का मा'मूल बनाएं, तो اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस की बरकत से ढेरों नेकियां नामए आ'माल में लिखी जाएं ।

          याद रखिये ! क़ुरआने करीम में ह़लाल व ह़राम के अह़काम, इ़ब्रतों और नसीह़तों के अक़्वाल, अम्बियाए किराम عَلَیْھِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام और पिछली उम्मतों के वाक़िआ़त व अह़वाल और जन्नत व दोज़ख़ के ह़ालात के साथ साथ उ़लूम के ऐसे ख़ज़ाने मौजूद हैं जो क़ियामत तक भी ख़त्म नहीं हो सकते । जैसा कि दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "अ़जाइबुल क़ुरआन मअ़ ग़राइबुल क़ुरआन" में लिखा है : क़ुरआने मजीद अगर्चे ज़ाहिर में 30 पारों का मजमूआ़ है लेकिन इस का बात़िन करोड़ों बल्कि अरबों उ़लूमो मआ़रिफ़ का ऐसा ख़ज़ाना है जो कभी ख़त्म नहीं हो सकता । किसी वली का मश्हूर शे'र है कि :

تَقَاصَرَ عَنْہُ اَفْہَامُ الرِّجَالِ                                             جَمِیْعُ الْعِلْمِ فِی الْقُرْاٰنِ لٰکِنْ

तर्जमा : या'नी तमाम उ़लूम क़ुरआन में मौजूद हैं लेकिन लोगों की अ़क़्लें उन के समझने से क़ासिर हैं ।

          क़ुरआने मजीद में सिर्फ़ उ़लूम ही का बयान नहीं बल्कि ह़क़ीक़त येह है कि क़ुरआने मजीद में पूरी काइनात और सारे आ़लम की हर हर चीज़ का वाज़ेह़, रौशन और तफ़्सीली बयान है, या'नी आसमान के एक एक तारे, समुन्दर के एक एक क़त़रे, सब्ज़ए ज़मीन के एक एक तिन्के, रेगिस्तान के एक एक ज़र्रे, दरख़्तों के एक एक पत्ते, अ़र्श व कुर्सी के एक एक गोशे, आ़लमे काइनात के एक एक कोने, माज़ी का हर हर वाक़िआ़, ह़ाल का हर हर मुआ़मला, मुस्तक़्बिल का हर हर ह़ादिसा क़ुरआने मजीद में निहायत वज़ाह़त के साथ तफ़्सीली बयान किया गया है । क़ुरआने मजीद तो उ़लूमो मआ़रिफ़ का वोह ख़ज़ाना है जो कभी ख़त्म ही नहीं हो सकता बल्कि क़ियामत तक उ़लमाए किराम इस बहुत बड़े समुन्दर से हमेशा अ़जीबो ग़रीब मज़ामीन के मोती निकालते ही रहेंगे और हज़ारों लाखों किताबों के दफ़्तर तय्यार होते ही रहेंगे । (अ़जाइबुल क़ुरआन मअ़ ग़राइबुल क़ुरआन, स. 419, 420, मुल्तक़त़न)

          तो आइये ! आज हम इसी बुलन्दो बाला और अ़ज़ीमुश्शान किताब की तिलावत करने वालों के चन्द ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़त व ह़िकायात सुनती हैं ताकि हमारे अन्दर भी रब्बे करीम के इस पाकीज़ा कलाम "क़ुरआने करीम" की तिलावत का ज़ौक़ो शौक़ बेदार हो जाए । चुनान्चे,