Maa Baap Ko Satana Haram Hai

Book Name:Maa Baap Ko Satana Haram Hai

वालिदैन की इत़ाअ़त व फ़रमां बरदारी

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! बिला शुबा मां-बाप, अल्लाह करीम की बड़ी ने'मत हैं । वालिदैन इन्सान की ज़िन्दगी का बहुत बड़ा सहारा होते हैं, येही वोह हस्तियां हैं जो हर दुख, तक्लीफ़, मुसीबत, परेशानी और ग़म में इन्सान के साथ होते हैं, अल्लाह पाक ने वालिदैन को बड़ा मक़ामो मर्तबा अ़त़ा फ़रमाया है । वालिदैन के मक़ामो मर्तबे और इ़ज़्ज़त व अ़ज़मत का अन्दाज़ा इस बात से कीजिये कि क़ुरआने पाक में अल्लाह पाक ने अपनी इ़बादत का ह़ुक्म फ़रमाने के बा'द वालिदैन के साथ एह़सान व भलाई करने का ह़ुक्म इरशाद फ़रमाया है । चुनान्चे, पारह 15, सूरए बनी इस्राईल की आयत नम्बर 23 ता 25 में फ़रमाने बारी है :

وَ قَضٰى رَبُّكَ اَلَّا تَعْبُدُوْۤا اِلَّاۤ اِیَّاهُ وَ بِالْوَالِدَیْنِ اِحْسَانًاؕ-اِمَّا یَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ اَحَدُهُمَاۤ اَوْ كِلٰهُمَا فَلَا تَقُلْ لَّهُمَاۤ اُفٍّ وَّ لَا تَنْهَرْهُمَا وَ قُلْ لَّهُمَا قَوْلًا كَرِیْمًا(۲۳) وَ اخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَ قُلْ رَّبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّیٰنِیْ صَغِیْرًاؕ(۲۴) رَبُّكُمْ اَعْلَمُ بِمَا فِیْ نُفُوْسِكُمْؕ-اِنْ تَكُوْنُوْا صٰلِحِیْنَ فَاِنَّهٗ كَانَ لِلْاَوَّابِیْنَ غَفُوْرًا(۲۵) (پ۱۵،بنی اسرائیل ،۲۳تا۲۵)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और तुम्हारे रब ने ह़ुक्म फ़रमाया कि उस के सिवा किसी की इ़बादत न करो और मां-बाप के साथ अच्छा सुलूक करो । अगर तेरे सामने उन में से कोई एक या दोनों बुढ़ापे को पहुंच जाएं, तो उन से उफ़ तक न कहना और उन्हें न झिड़कना और उन से ख़ूब सूरत, नर्म बात कहना और उन के लिये नर्म दिली से आ़जिज़ी का बाज़ू झुका कर रख और दुआ़ कर कि ऐ मेरे रब ! तू इन दोनों पर रह़म फ़रमा जैसा इन दोनों ने मुझे बचपन में पाला, तुम्हारा रब ख़ूब जानता है जो तुम्हारे दिलों में है, अगर तुम लाइक़ हुवे, तो बेशक वोह तौबा करने वालों को बख़्शने वाला है ।

          बयान कर्दा आयाते मुबारका के तह़्त ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब वालिदैन पर ज़ो'फ़ (या'नी कमज़ोरी) का ग़लबा हो, 'ज़ा में क़ुव्वत न रहे और जैसा तू बचपन में उन के पास बे त़ाक़त था, ऐसे ही वोह आख़िरी उ़म्र में तेरे पास नातुवां (या'नी कमज़ोर) रह जाएं, तो कोई ऐसी बात ज़बान से न निकालना जिस से येह समझा जाए कि उन की त़रफ़ से त़बीअ़त पर कुछ गिरानी (या'नी बोझ) है, न उन्हें झिड़कना, न तेज़ आवाज़ से बात करना बल्कि कमाले ह़ुस्ने अदब (या'नी निहायत अच्छे अदब) के साथ मां-बाप से इस त़रह़ कलाम कर जैसे ग़ुलाम व ख़ादिम (अपने) आक़ा से करता है, उन से नर्मी व तवाज़ोअ़ से पेश आ और उन के साथ थके वक़्त में शफ़्क़त व मह़ब्बत का बरताव कर कि उन्हों ने तेरी मजबूरी के वक़्त तुझे मह़ब्बत से परवरिश किया था और जो चीज़ उन्हें दरकार हो, वोह उन पर ख़र्च करने में दरेग़ (या'नी बुख़्ल) न कर । मुद्दआ़ (या'नी मत़लब) येह है कि दुन्या में बेहतर सुलूक और ख़िदमत में कितना भी मुबालग़ा किया जाए लेकिन वालिदैन के एह़सान का ह़क़ अदा नहीं हो सकता, इस लिये बन्दे को चाहिये कि बारगाहे इलाही में उन पर फ़ज़्लो रह़मत फ़रमाने की दुआ़ करे और अ़र्ज़ करे कि या रब ! मेरी ख़िदमतें उन के एह़सान की जज़ा (या'नी