Book Name:Dil Joi Kay Fazail
वाली इस्लामी बहन को कोई दुन्यावी मन्सब मिल जाए, तो उस का मिज़ाज आसमान पर चला जाता है, इस मामूली दुन्या का आ़रज़ी ओ़ह्दा मिलने के बाद ज़मीन पर पाउं नहीं जमते । ऐसे में अपने साथ रेहने वालियों को यूं भुला दिया जाता है जैसे उन के साथ कभी तअ़ल्लुक़ रहा ही न हो, अपने रिश्तेदारों को यूं नज़र अन्दाज़ (Ignore) कर दिया जाता है जैसे उन से कभी जान पेहचान ही न रही हो । अफ़्सोस ! बाज़ नादान तो अपनी एह़सान करने वालियों को भी आंखें दिखाने लगती हैं ।
सोचना चाहिए कि कहीं ओ़ह्दा मिलने के बाद तकब्बुर की सीढ़ी दोज़ख़ में न गिरा दे, लिहाज़ा अ़क़्लमन्दी का सुबूत देते हुवे आ़जिज़ी व इन्केसारी इख़्तियार करनी चाहिए । याद रहे ! अगर कोई इस्लामी बहन घर के ह़ालात अच्छे होने के बाद क़ीमती लिबास पेहनती है, अपनी मसरूफ़िय्यात की वज्ह से इस्लामी बहनों से मेल जोल कम रखती है, तब भी हमें उस के बारे में हमेशा अच्छा गुमान ही रखना चाहिए, हम येह नहीं केह सकतीं कि फ़ुलां इस्लामी बहन तो मग़रूर हो गई है, सीधे मुंह बात ही नहीं करती वग़ैरा ।
याद रखिए ! किसी इस्लामी बहन के बारे में बद गुमानी की हमें इजाज़त नहीं । बद गुमानी गुनाहे कबीरा, ह़राम और दोज़ख़ में ले जाने वाला काम है । अल्लाह पाक हमें बद गुमानी से बचने और हमेशा आ़जिज़ी करने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए । आइए ! तरग़ीब के लिए आ़जिज़ी की फ़ज़ीलत पर 2 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم सुनती हैं :
1. इरशाद फ़रमाया : जो अपने मुसलमान भाई के लिए आ़जिज़ी इख़्तियार करता है, अल्लाह पाक उसे बुलन्दी अ़त़ा फ़रमाता है और जो मुसलमान भाई पर बुलन्दी चाहता है, अल्लाह पाक उसे पस्ती में डाल देता है । (معجم اوسط ، ۵ / ۳۹۰ ، حدیث : ۷۷۱۱)
2. इरशाद फ़रमाया : अल्लाह पाक आ़जिज़ी करने वालों से मह़ब्बत और तकब्बुर करने वालों को ना पसन्द फ़रमाता है । ( کنز العمال ، کتاب الاخلاق ، قسم الاقوال ، ۲ / ۵۰ ، حدیث : ۵۷۳۱ ، الجزء الثالث)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! हम दिलजूई के वाक़िआ़त सुन रही थीं । आइए ! मज़ीद वाक़िआ़त सुनती हैं । चुनान्चे,
ह़ज़रते अ़ल्लामा सय्यिद अह़मद सई़द काज़िमी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ भी दिलजूई के आ़दी थे, आप ज़बरदस्त आ़लिमे दीन और अल्लाह पाक के वली थे, आप सह़ीह़ माना में अख़्लाके़ नबवी का अ़मली नुमूना थे, ग़रीबों का ख़याल रखने, नर्मी, हमदर्दी, ख़ैर ख़्वाही और मेहरबानी करने समेत कई बेहतरीन औसाफ़ में अपनी मिसाल आप थे । मन्क़ूल है : एक बार एक साह़िब ने अपने भान्जे की शादी में काज़िमी शाह साह़िब رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ को दावत पेश की और निकाह़ पढ़ाने की दरख़ास्त की, आप ने मन्ज़ूर फ़रमा ली । निकाह़ के लिए अ़स्र और मग़रिब का दरमियानी वक़्त त़ै किया गया । बारात आने में कुछ देर हो गई । वोह साह़िब मग़रिब के बाद आप को लेने पहुंचे, तो आप ने