Dil Joi Kay Fazail

Book Name:Dil Joi Kay Fazail

होना बहुत ज़रूरी है । दिलजूई का बुन्यादी मक़्सद ही येह है कि दूसरों के दिलों में ख़ुशी दाख़िल की जाए जब कि नर्मी को अपनाए बिग़ैर दूसरों को नाराज़ तो किया जा सकता है मगर उन्हें ख़ुश नहीं किया जा सकता । याद रखिए ! नर्म ज़बान में ख़र्च कुछ नहीं होता है मगर इस से फ़ाएदा बहुत होता है जब कि कड़वी और सख़्त ज़बान इस्तिमाल करने में नुक़्सान ही नुक़्सान है ।

          यक़ीन जानिए ! अगर किसी इस्लामी बहन में नर्मी पैदा हो जाए, तो वोह हर किसी की आंख का तारा बन जाती है । अल्लाह वालों से लोग इस लिए भी मह़ब्बत करते हैं कि उन का किरदार और आ़दातो अत़्वार नर्मी के सांचे में ढल चुके होते हैं । लिहाज़ा अगर हम आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी का मदनी काम करना और बढ़ाना चाहती हैं, अगर हम सुन्नतों भरे इजतिमाआ़त में इस्लामी बहनों की तादाद को बढ़ाना चाहती हैं, तो हमें चाहिए कि हम अपने मिज़ाज में नर्मी पैदा करें और नर्मी की आ़दत अपनाने के लिए दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल को मज़बूत़ी के साथ थामे रहें ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

सलाम करने की सुन्नतें और आदाब

प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आइए ! ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "101 मदनी फूल" से सलाम करने की सुन्नतें और आदाब सुनती हैं । ٭ मुसलमान (मह़ारिम) से मुलाक़ात करते वक़्त उसे सलाम करना सुन्नत है । ٭ मक्तबतुल मदीना की किताब "बहारे शरीअ़त" जिल्द 3, सफ़ह़ा 459 पर लिखे हुवे जुज़इय्ये का ख़ुलासा है : सलाम करते वक़्त दिल में येह निय्यत हो कि जिस को सलाम करने लगी हूं, उस का माल और इ़ज़्ज़तो आबरू सब कुछ मेरी ह़िफ़ाज़त में है और मैं उन में से किसी चीज़ में दख़्ल अन्दाज़ी करना ह़राम जानती हूं । (बहारे शरीअ़त, 3 / 459, ह़िस्सा : 16, मुलख़्ख़सन) ٭ दिन में कितनी ही बार मुलाक़ात हो, एक कमरे से दूसरे कमरे में बार बार आना जाना हो, वहां मौजूद मह़रमों को सलाम करना कारे सवाब है । ٭ सलाम में पहल करना सुन्नत है । ٭ जो सलाम में पहल करे, वोह अल्लाह करीम की मुक़र्रब है । ٭ जो सलाम में पहल करे, वोह तकब्बुर से भी बरी है । जैसा कि नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने बा सफ़ा है : पेहले सलाम केहने वाला तकब्बुर से बरी है । (شعب الایمان  ،   کتاب ،  ۶ / ۴۳۳ ،  حدیث :  ۸۷۸۶) ٭ सलाम (में पहल) करने वाले पर 90 रह़मतें और जवाब देने वाले पर 10 रह़मतें नाज़िल होती हैं । (कीमियाए सआ़दत, 1 / 394) ٭ اَلسَّلَامُ عَلَیْکُمْ केहने से 10 नेकियां मिलती हैं, साथ में وَ رَحْمَۃُ اللہ भी कहें, तो 20 नेकियां हो जाएंगी और وَبَرَکَاتُہٗ शामिल करें, तो 30 नेकियां हो जाएंगी । बाज़ लोग सलाम के साथ जन्नतुल मक़ाम और दोज़ख़ुल ह़राम के अल्फ़ाज़ बढ़ा देते हैं, येह ग़लत़ त़रीक़ा है । ٭ सलाम का जवाब फ़ौरन और इतनी आवाज़ से देना वाजिब है कि जिस इस्लामी बहन ने सलाम किया, वोह सुन ले ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد