Dil Joi Kay Fazail

Book Name:Dil Joi Kay Fazail

1.      फ़रमाया : जो शख़्स किसी मुसलमान का दिल ख़ुश करता है, तो अल्लाह पाक उस ख़ुशी से एक फ़िरिश्ता पैदा फ़रमाता है जो अल्लाह पाक की इ़बादत और उस के एक होने का बयान करता रेहता है । जब वोह आदमी मरने के बाद अपनी क़ब्र में पहुंचता है, तो वोह फ़िरिश्ता उस के पास आ कर केहता है : क्या तुम मुझे जानते हो ? आदमी केहता है : तुम कौन हो ? वोह केहता है : मैं वोह ख़ुशी हूं जो तू ने फ़ुलां बन्दे के दिल में दाख़िल की थी और आज मैं तेरा दिल बेहला कर परेशानी दूर करूंगा, मैं तुझे तेरी ह़ुज्जत याद दिलाऊंगा, मैं क़ब्र के फ़िरिश्तों के जवाब में तुझे ह़क़ पर साबित क़दम रखूंगा, मैं क़ियामत के दिन तेरे साथ होऊंगा, रब्बे करीम की बारगाह में तेरी शफ़ाअ़त करूंगा और जन्नत में तेरा मक़ाम दिखाऊंगा । (موسوعة ابن ابی الدنیا ،  قضاء الحوائج ، ۴ / ۲۱۳ ،  حدیث :  ۱۱۵)

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! मालूम हुवा ! दिलजूई करना और दूसरों के दिलों में ख़ुशी दाख़िल करना ऐसा काम है कि जिस से अल्लाह पाक अपने बन्दे को मुश्किलात से बचाने के अस्बाब पैदा फ़रमा देता है । आइए ! दिलजूई से मुतअ़ल्लिक़ बुज़ुर्गों के कुछ अक़्वाल भी सुनती हैं ।

1.      ह़ज़रते बिशर ह़ाफ़ी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : किसी मुसलमान का दिल ख़ुश करना, सौ (नफ़्ल) ह़ज से बेहतर है । (कीमियाए सआ़दत, 2 / 751)

2.      ह़ज़रते ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : क़ियामत के बाज़ार में किसी सौदे की उतनी क़ीमत न होगी जितनी दिल का ख़याल रखने और दिल ख़ुश करने की होगी । (मह़बूबे इलाही, स. 237)

3.      ह़ज़रते मक्ह़ूल दिमिश्क़ी رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ ने फ़रमाया : जो शख़्स किसी की दिलजूई करते हुवे फ़ौत हुवा, वोह शहीद है । (حلیۃ الاولیاء ، ۵ / ۲۳۸)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

दिलजूई के वाक़िआ़त

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! दिलजूई के बड़े फ़ज़ाइल हैं, येही वज्ह है कि हमारे बुज़ुर्गों के दिलों में दूसरों की दिलजूई और दिलदारी का जज़्बा कूट कूट कर भरा हुवा था, वोह मुक़द्दस हस्तियां लोगों की दिलजूई करते और अपने दिलों को राह़त (Comfort) पहुंचाते थे । आइए ! अल्लाह वालों के दिलजूई के वाक़िआ़त और उन से ह़ासिल होने वाले निकात सुनती हैं ।

फ़ारूके़ आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की एक ख़ानदान की मदद

          एक रात अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूके़ आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ मदीनए मुनव्वरा का दौरा फ़रमा रहे थे कि एक ख़ैमे पर नज़र पड़ी, जब क़रीब गए, तो आप को किसी के तक्लीफ़ में मुब्तला होने की आवाज़ आई । उस ख़ैमे के बाहर एक शख़्स बैठा था, आप ने सलाम के बाद उस से ह़ाल पूछा, तो मालूम हुवा कि वोह ख़लीफ़ए वक़्त से ही मिलने आया है, अलबत्ता उसे येह मालूम नहीं था कि ख़लीफ़ए वक़्त उस के सामने खड़े हैं । बहर ह़ाल उस ने बताया कि उस की ज़ौजा उम्मीद से है और बच्चे की पैदाइश का वक़्त क़रीब है । अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूके़