Sadqa ke Fawaid

Book Name:Sadqa ke Fawaid

नवाज़ते हैं । हमें भी चाहिए कि अल्लाह पाक के इस मक़्बूल वली की दुआ़एं पाने का कोई मौक़अ़ हाथ से जाने न दें, क्या मालूम इन की कौन सी दुआ़ हमारी दुन्या व आख़िरत को बेहतर बना दे ।

          वोह लोग जो आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के लिए स्टॉल्ज़, चन्दा बक्स या घरेलू सदक़ा बक्स वग़ैरा के ज़रीए़ फ़न्ड्ज़ जम्अ़ करने या करवाने में किसी भी त़रह़ तआ़वुन करते हैं । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने उन के लिए कैसी प्यारी प्यारी दुआ़ फ़रमाई है : या रब्बल मुस्त़फ़ा ! जो चन्दा बक्स लगाते हैं, लगवाते हैं, इस के लिए भाग दौड़ करते हैं, इस में चन्दा डालते हैं, जम्अ़ करते हैं, ले जाते हैं, जिस त़रह़ भी इस में ह़िस्सा लेते हैं, इन को सिर्फ़ अपने दर का मोह़ताज रख, किसी ग़ैर का मोह़ताज न करना । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم

          इसी ह़िकायत से येह भी दर्स ह़ासिल हुवा ! जो अल्लाह पाक की राह में इख़्लास के साथ सदक़ा करता है, अल्लाह पाक उस को ज़रूर अज्र अ़त़ा फ़रमाता है, लिहाज़ा हमें भी चाहिए कि वक़्तन फ़ वक़्तन जितनी तौफ़ीक़ हो, ज़रूर सदक़ा किया करें, اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस की बे शुमार दीनी व दुन्यावी बरकतें ह़ासिल होंगी । अल्लाह पाक की राह में सदक़ा व ख़ैरात करने की अहम्मिय्यत व फ़ज़ीलत का अन्दाज़ा इस बात से लगाइए कि ख़ुद हमारे प्यारे रब्बे करीम ने क़ुरआने करीम में सदक़ा व ख़ैरात करने का ह़ुक्म इरशाद फ़रमाया और मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर सदक़ा व ख़ैरात करने वालों की तारीफ़ भी फ़रमाई है । चुनान्चे, पारह 1, सूरतुल बक़रह की आयत नम्बर 2 और 3 में इरशाद होता है :

هُدًى لِّلْمُتَّقِیْنَۙ(۲) الَّذِیْنَ یُؤْمِنُوْنَ بِالْغَیْبِ وَ یُقِیْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَ مِمَّا رَزَقْنٰهُمْ یُنْفِقُوْنَۙ(۳) )پ۱ ، البقرۃ : ۳ ، ۲(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : इस में डरने वालों के लिए हिदायत है, वोह लोग जो बिग़ैर देखे ईमान लाते हैं और नमाज़ क़ाइम करते हैं और हमारे दिए हुवे रिज़्क़ में से कुछ (हमारी राह में) ख़र्च करते हैं ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! वाके़ई़ बहुत ख़ुश नसीब हैं वोह मुसलमान जो अपने माल के वोह ह़ुक़ूक़ अदा करते हैं जिन का अदा करना उन पर लाज़िम व ज़रूरी है । ٭ जो ख़ुश दिली से वक़्त पर पूरी पूरी ज़कात व फ़ित़्रा अदा करते हैं । ٭ जो अपने माल को मां-बाप, बहन, भाई और औलाद पर ख़र्च करते हैं । ٭ जो अपने रिश्तेदारों (Relatives) की मौत पर उन को सवाब पहुंचाने के लिए सोइम, दसवां, चालीसवां और बरसी वग़ैरा कर के ग़रीबों और मोह़ताजों को खाना खिलाते हैं । ٭ जो सवाब पहुंचाने के लिए मक्तबतुल मदीना के रसाइल तक़्सीम करते हैं । ٭ ख़ुश नसीब हैं वोह मुसलमान जो अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ लंगरे रज़विय्या (यानी मुसलमानों को खाना खिलाने, सह़री व इफ़्त़ारी करवाने) का इन्तिज़ाम करते हैं । ٭ जो लोगों के ह़ुक़ूक़ का लिह़ाज़ रखते हुवे इख़्लास के साथ क़ुरआन ख़्वानी, मेह़फ़िले नात और सुन्नतों भरे इजतिमाआ़त पर ख़र्च करते हैं । ٭ जो मसाजिद, जामिआ़तुल मदीना, मदारिसुल मदीना और दीगर शोबाजाते दावते इस्लामी की तामीर व तरक़्क़ी और अख़राजात में ह़िस्सा लेते हैं । ٭ जो दीनी त़लबा व त़ालिबात पर अपना