Siddique e Akbar Ki Sakhawat

Book Name:Siddique e Akbar Ki Sakhawat

अक्बर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने ज़िन्दगी के हर मोड़ पर मदीने वाले आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का साथ दे कर जां निसारी व वफ़ादारी का सुबूत दिया । (الاکمال فی اسماء الرجال ملحق بمشکاۃ المصابیح،ص ۵۸۷، تاریخ الخلفاء،ص ۲۷تا۶۶ ملخصاً و ملتقطاً)

ह़ज़रते बिलाल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की आज़ादी

          एक दिन अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ उस जगह से गुज़रे जहां ह़ज़रते बिलाले ह़ब्शी رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को उमय्या बिन ख़लफ़ ज़ुल्म का निशाना बना रहा था । आप ने उमय्या बिन ख़लफ़ को डांटते हुवे कहा : इस मिस्कीन को सताते हुवे तुझे अल्लाह पाक से डर नहीं लगता ? कब तक ऐसा करता रहेगा ? वोह केहने लगा : अबू बक्र ! तुम ने ही इसे ख़राब (यानी मुसलमान) किया है, तुम ही इसे छुड़ा लो । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने फ़रमाया : मेरे पास ह़ज़रते बिलाल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से ज़ियादा तन्दुरुस्त व त़ाक़तवर ग़ुलाम है, ह़ज़रते बिलाल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ मुझे दे कर वोह तुम ले लो । केहने लगा : मन्ज़ूर है । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने कुछ रक़म और ग़ुलाम के बदले उन्हें ख़रीद कर आज़ाद कर दिया ।

क़ुरआन में सिद्दीके़ अक्बर رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की शान

          इस वाक़िए़ का ज़िक्र करते हुवे पारह 30, सूरतुल्लैल की आयत नम्बर 19 ता 21 में इरशाद होता है :

وَ مَا لِاَحَدٍ عِنْدَهٗ مِنْ نِّعْمَةٍ تُجْزٰۤىۙ(۱۹) اِلَّا ابْتِغَآءَ وَجْهِ رَبِّهِ الْاَعْلٰىۚ(۲۰) وَ لَسَوْفَ یَرْضٰى۠(۲۱)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और किसी का उस पर कुछ एह़सान नहीं जिस का बदला दिया जाना हो, सिर्फ़ अपने सब से बुलन्द शान वाले रब की रिज़ा तलाश करने के लिए और बेशक क़रीब है कि वोह ख़ुश हो जाएगा ।

        तफ़्सीरे ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान में लिखा है : जब अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने ह़ज़रते बिलाल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को बहुत ज़ियादा