Siddique e Akbar Ki Sakhawat

Book Name:Siddique e Akbar Ki Sakhawat

मदीना की किताब "बहारे शरीअ़त" जिल्द 3, सफ़ह़ा 459 पर लिखे हुवे जुज़्इय्ये का ख़ुलासा है : सलाम करते वक़्त दिल में येह निय्यत हो कि जिस को सलाम करने लगी हूं, उस का माल और इ़ज़्ज़तो आबरू सब कुछ मेरी ह़िफ़ाज़त में है और मैं इन में से किसी चीज़ में दख़्ल अन्दाज़ी करना ह़राम जानती हूं । (बहारे शरीअ़त, 3 / 459, ह़िस्सा : 16, मुलख़्ख़सन) ٭ दिन में कितनी ही बार मुलाक़ात हो, एक कमरे से दूसरे कमरे में बार बार आना जाना हो, वहां मौजूद इस्लामी बहनों को सलाम करना कारे सवाब है । ٭ सलाम में पहल करना सुन्नत है । ٭ जो सलाम में पहल करे, वोह अल्लाह करीम का मुक़र्रब है । ٭ जो सलाम में पहल करे, वोह तकब्बुर से भी बरी है । जैसा कि नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने बा सफ़ा है : पेहले सलाम केहने वाला तकब्बुर से बरी है । (شعب الایمان ،  کتاب، ۶/۴۳۳، حدیث: ۸۷۸۶) ٭ सलाम (में पहल) करने वाले पर 90 रह़मतें और जवाब देने वाले पर 10 रह़मतें नाज़िल होती हैं । (कीमियाए सआ़दत, 1 / 394) ٭ اَلسَّلَامُ عَلَیْکُمْ केहने से 10 नेकियां मिलती हैं, साथ में وَ رَحْمَۃُ اللہ भी कहें, तो 20 नेकियां हो जाएंगी और وَبَرَکَاتُہٗ शामिल करें, तो 30 नेकियां हो जाएंगी । बाज़ लोग सलाम के साथ जन्नतुल मक़ाम और दोज़ख़ुल ह़राम के अल्फ़ाज़ बढ़ा देते हैं, येह ग़लत़ त़रीक़ा है । ٭ सलाम का जवाब फ़ौरन और इतनी आवाज़ से देना वाजिब है कि जिस इस्लामी बहन ने सलाम किया, वोह सुन ले ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد