Book Name:Faizan e Sahaba O Ahle Bait
ज़ादियां رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُنَّ اَجْمَعِیْن, पोते इमाम बाक़िर رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ समेत दीगर उ़लमा व मुह़द्दिसीन शामिल हैं । (الاصابہ،حرف الحاء، رقم۱۷۲۹، الحسین ،۲/۶۸) ह़ज़रते इमामे ह़ुसैन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ का मुस्तक़िल इ़ल्मी ह़ल्क़ा मस्जिदे नबवी में लगा होता, जिस में आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ लोगों को शरई़ मसाइल से आगाह फ़रमाते थे । ( تاریخ ابن عساکر ،رقم ۱۵۶۶، الحسین بن علی بن ابی طالب۔۔۔الخ ۱۴/۱۷۹ مفھوماً)
ह़ज़राते ह़-सनैने करीमैन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا के तअ़ल्लुक़ से अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के चार रसाइल : "इमामे ह़ुसैन की करामात" (64 सफ़ह़ात), "इमामे ह़सन की 30 ह़िकायात" (28 सफ़ह़ात), "करबला का ख़ूनीं मन्ज़र" (40 सफ़ह़ात) और "ह़ुसैनी दुल्हा" (16 सफ़ह़ात) हदिय्यतन त़लब कीजिये और मुत़ालआ़ फ़रमाइये ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! बयान को इख़्तिताम की त़रफ़ लाते हुवे सुन्नत की फ़ज़ीलत और चन्द सुन्नतें और आदाब बयान करने की सआ़दत ह़ासिल करती हूं । शहनशाहे नुबुव्वत, मुस्त़फ़ा जाने रह़मत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने जन्नत निशान है : जिस ने मेरी सुन्नत से मह़ब्बत की, उस ने मुझ से मह़ब्बत की और जिस ने मुझ से मह़ब्बत की, वोह जन्नत में मेरे साथ होगा । (مشکاۃ المصابیح،کتاب الایمان،باب الاعتصام بالکتاب والسنۃ،۱/۹۷،حدیث:۱۷۵)
घर में आने जाने की सुन्नतें और आदाब
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "101 मदनी फूल" से घर में आने जाने के आदाब मुलाह़ज़ा फ़रमाइये । ٭ जब घर से बाहर निकलें, तो येह दुआ़ पढ़िये : بِسْمِ اللہِ تَوَکَّلْتُ عَلَی اللہِ لَاحَوْلَ وَلَا قُوَّۃَ اِلَّا بِاللہِ तर्जमा : अल्लाह पाक के नाम से, मैं ने अल्लाह करीम पर भरोसा किया, अल्लाह पाक के बिग़ैर न त़ाक़त है, न क़ुव्वत । (ابوداو،د، ج۴ ص۴۲۰ حدیث۵۰۹۵) اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस दुआ़ को पढ़ने की बरकत से सीधी राह पर रहेंगे, आफ़तों से ह़िफ़ाज़त होगी और अल्लाह करीम की मदद शामिले ह़ाल रहेगी । ٭ घर में दाख़िल होने की दुआ़ : اَللّٰھُمَّ اِنِّیۤ اَسْأَ لُکَ خَیْرَ الْمَوْلَجِ وَ خَیْرَ الْمَخْرَجِ بِسْمِ اللہ وَلَجْنَا وَ بِسْمِ اللہِ خَرَجْنَا وَ عَلَی اللہِ رَبِّنَاتَوَ کَّلْنَا तर्जमा : ऐ अल्लाह पाक ! मैं तुझ से दाख़िल होने की और निकलने की भलाई मांगती हूं, अल्लाह पाक के नाम से हम (घर में) दाख़िल हुवे और उसी के नाम से बाहर आए और अपने रब्बे करीम पर हम ने भरोसा किया । (ابوداود،۴/۴۲۰،حدیث:۵۰۹۶) दुआ़ पढ़ने के बाद घर वालों को सलाम करे फिर बारगाहे रिसालत में सलाम अ़र्ज़ करे, इस के बाद सूरतुल इख़्लास शरीफ़ पढ़े, اِنْ شَآءَ اللّٰہ रोज़ी में बरकत और घरेलू झगड़ों से बचत होगी । ٭ अगर ऐसे मकान (ख़्वाह अपने ख़ाली घर) में जाना हो कि उस में कोई न हो, तो येह कहिये : اَلسَّلَامُ عَلَیْنَا وَعَلٰی عِبَادِ اللہِ الصّٰلِحِیْن (तर्जमा : हम पर और अल्लाह करीम के नेक बन्दों पर सलाम), तो फ़िरिश्ते इस सलाम का जवाब देंगे । (رَدُّالْمُحتارج۹ ص ۶۸۲) या इस त़रह़ कहे : اَلسَّلَامُ عَلَیْکَ اَیُّھَا النَّبِیُّ (यानी या नबी आप पर सलाम) क्यूंकि ह़ुज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की रूह़े मुबारक मुसलमानों के घरों में तशरीफ़ फ़रमा होती है । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा 16, स. 96, شرح الشّفاء للقاری،۲/۱۱۸) ٭ जब किसी के घर में दाख़िल होना चाहें, तो इस त़रह़ कहिये : اَلسَّلَامُ عَلَیْکُمْ क्या