Islami Bhai Charah

Book Name:Islami Bhai Charah

मन्क़ूल है : इन का सामाने तिजारत 700 ऊंटों पर लोड हो कर आता था और जिस दिन मदीने में इन का तिजारती सामान पहुंचता, तमाम शहर में धूम मच जाती थी । (اسد الغابۃ ، عبدالرحمن بن عوف،۳/۴۹۸ملخصاً)

          ह़ज़रते अ़ब्दुर्रह़मान बिन औ़फ़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की त़रह़ दूसरे मुहाजिरीन ने भी दुकानें खोल लीं । अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ कपड़े की तिजारत करते थे, ह़ज़रते उ़स्माने ग़नी رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ क़ैनुक़ाअ़ के बाज़ार में खजूरों की तिजारत करने लगे, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूके़ आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ भी तिजारत में मश्ग़ूल हो गए थे जबकि दूसरे मुहाजिरीन ने भी छोटी बड़ी तिजारतें शुरूअ़ कर दीं । (सीरते मुस्त़फ़ा, स. 188, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि मक्की मदनी सुल्त़ान, रह़मते आ़लमिय्यान صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के भाईचारे पर मुश्तमिल तालीमात किस क़दर शानदार हैं कि वोह सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان जो अपने घरबार को छोड़ कर बे सरो सामानी के आ़लम में रसूले ख़ुदा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के ह़ुक्म की बजा आवरी करते हुवे मदीनए पाक तशरीफ़ लाए, तो नबिय्ये करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की रह़मत ने येह गवारा न किया कि अल्लाह पाक और उस के रसूल की ख़ात़िर हिजरत करने वाले बे सहारा रहें और उन्हें अकेलापन मह़सूस हो, लिहाज़ा आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने उन के और अन्सार के दरमियान भाईचारे का रिश्ता क़ाइम फ़रमा दिया, अन्सार ने भी अपने भाइयों से बढ़ कर उन की इ़ज़्ज़तो तकरीम की और मिल जुल कर गुलशने इस्लाम की आबियारी करने में अपना किरदार अदा किया । अन्सार व मुहाजिरीन का आपस में मह़ब्बतो उल्फ़त और इत्तिफ़ाक़ व इत्तिह़ाद का येह अ़ज़ीम अ़मल बारगाहे इलाही में इस क़दर मक़्बूल हुवा कि उस ने अपने पाकीज़ा कलाम क़ुरआने करीम में इन मुअ़ज़्ज़ज़ हस्तियों की तारीफ़ो तौसीफ़ में आयाते मुक़द्दसा नाज़िल फ़रमाईं । चुनान्चे, पारह 10, सूरतुल अन्फ़ाल की आयत नम्बर 74 में रब्बे करीम का इरशादे ह़क़ीक़त बुन्याद है :

وَ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَ هَاجَرُوْا وَ جٰهَدُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَ الَّذِیْنَ اٰوَوْا وَّ نَصَرُوْۤا اُولٰٓىٕكَ هُمُ الْمُؤْمِنُوْنَ حَقًّاؕ-لَهُمْ مَّغْفِرَةٌ وَّ رِزْقٌ كَرِیْمٌ(۷۴) ۱۰،الانفال:۷۴(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और वोह जो ईमान लाए और मुहाजिर बने और अल्लाह की राह में लड़े और जिन्हों ने पनाह दी और मदद की, वोही सच्चे ईमान वाले हैं, उन के लिए बख़्शिश और इ़ज़्ज़त की रोज़ी है ।

          बयान कर्दा आयते करीमा के तह़्त "तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान" में लिखा है : इस आयत में इन दोनों के ईमान की तस्दीक़ और इन के रह़मते इलाही के मुस्तह़िक़ होने का ज़िक्र है । इस आयत से मुहाजिरीन और अन्सार की अ़ज़मतो शान बयान करना मक़्सूद है कि मुहाजिरीन ने इस्लाम की ख़ात़िर अपने आबाई वत़न को छोड़ दिया, अपने अ़ज़ीज़, रिश्तेदारों से जुदाई गवारा की, मालो दौलत, मकानात और बाग़ात को ख़ात़िर में न लाए । इसी त़रह़ अन्सार ने भी मुहाजिरीन को मदीनए पाक में इस त़रह़ ठेहराया कि अपने घर और मालो मताअ़ में बराबर का शरीक कर लिया । येह सच्चे और कामिल मोमिन हैं, इन के लिए गुनाहों से बख़्शिश और जन्नत में इ़ज़्ज़त की रोज़ी है । (तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान, 4 / 54)