Book Name:Islami Bhai Charah
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अल्लाह का एह़सान अपने ऊपर याद करो जब तुम एक दूसरे के दुश्मन थे, तो उस ने तुम्हारे दिलों में मिलाप पैदा कर दिया, पस उस के फ़ज़्ल से तुम आपस में भाई भाई बन गए ।
तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान में लिखा है : अल्लाह पाक की नेमतों को याद करो ! जिन में से एक नेमत येह भी है कि ऐ मुसलमानो ! याद करो ! जब तुम आपस में एक दूसरे के दुश्मन थे और तुम्हारे दरमियान लम्बे अ़र्से की जंगें जारी थीं, ह़त्ता कि औस और ख़ज़रज में एक लड़ाई 120 साल जारी रही और उस के सबब रात दिन क़त्लो ग़ारत की गर्म बाज़ारी रेहती थी लेकिन इस्लाम की बदौलत अ़दावत व दुश्मनी दूर हो कर आपस में दीनी मह़ब्बत पैदा हुई, नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के ज़रीए़ अल्लाह पाक ने तुम्हारी दुश्मनियां मिटा दीं, जंग की आग ठन्डी कर दी और जंग करने वाले क़बीलों में उल्फ़तो मह़ब्बत के जज़्बात पैदा कर दिए । ताजदारे रिसालत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इन्हें एक दूसरे का भाई बना दिया, वरना येह लोग अपने कुफ़्र की वज्ह से जहन्नम के गढ़े के किनारे पर पहुंचे हुवे थे, अगर वोह इसी ह़ाल में मर जाते, तो दोज़ख़ में पहुंचते लेकिन अल्लाह करीम ने उन्हें ह़ुज़ूरे अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के सदके़ दौलते ईमान अ़त़ा कर के इस तबाही से बचा लिया । (तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान, 2 / 23, मुलख़्ख़सन)
ऐ आ़शिक़ाने सह़ाबाओ अहले बैत ! बयान कर्दा वाक़िआ़त में हम सभी के लिए नसीह़त है क्यूंकि हम भी सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان से मह़ब्बत का दावा करते हैं, लिहाज़ा होना तो येह चाहिए कि हम भी इन मुक़द्दस हस्तियों के नक़्शे क़दम पर चलते हुवे शरीअ़त के दाइरे में रेह कर अपनी ज़ाती रन्जिशों और लड़ाई, झगड़ों से बचते हुवे आपस में प्यार व मह़ब्बत से रेहते और एक दूसरे का ख़याल रखते मगर अफ़्सोस ! आज घर घर मैदाने जंग बना हुवा है, भाई भाई का मुंह देखना गवारा नहीं करता, सालहा साल की दोस्तियां ज़ाती नाराज़ियों की नज़्र हो जाती हैं, एक इदारे, एक शोबे, एक घर बल्कि एक कमरे में रेहते हुवे भी एक दूसरे के दुख दर्द का एह़सास नहीं किया जाता । बाज़ लोगों के सीने मुसलमानों के लिए नफ़रत और बुग़्ज़ो कीने से भरे हुवे हैं और मह़ब्बत व भाईचारे के जज़्बे का कोई ज़र्रा भी उन के दिल के किसी गोशे में मौजूद नहीं । बाज़ लोग दूसरों से रह़्म, शफ़्क़त और अच्छे सुलूक की उम्मीद तो रखते हैं मगर ख़ुद छोटी छोटी बातों और ज़ाती नाराज़ियों की बुन्याद पर अपने मुसलमान भाइयों से तअ़ल्लुक़ तोड़ लेते हैं, उन से शदीद नफ़रत करते हैं, उन्हें गालियां और धमकियां देते, उन के ख़िलाफ़ ना मुनासिब ज़बान इस्तिमाल करते बल्कि गिरेबान तक पकड़ लेते हैं, उन के ख़िलाफ़ झूटे मुक़द्दमात क़ाइम करवाते हैं, जादू टोने करवाते हैं, उन की ख़ुशी ग़मी की तक़रीबात का मुकम्मल बॉइकॉट कर देते हैं, जिस के सबब आपस में मह़ब्बत व उख़ुव्वत के सारे रिश्ते हमेशा के लिए दफ़्न हो जाते और मह़ब्बतों की जगह नफ़रतों की दीवारें क़ाइम हो जाती हैं । बिलफ़र्ज़ कोई किसी से मह़ब्बत भरा बरताव करता भी है, तो इस में अपना मफ़ाद ज़रूर पोशीदा होता है, शायद येही वज्ह है कि कसीर तादाद में होने के बा वुजूद आज मुसलमान ख़ौफ़ और ग़ैरों के ज़ुल्मो सितम का शिकार हैं । अगर आज मुसलमान मुत्तह़िद होते, दीगर मुसलमानों की ख़ैर ख़्वाही करते और अमीर व ग़रीब का फ़र्क़ किए बिग़ैर आपस में मह़ब्बत