Islami Bhai Charah

Book Name:Islami Bhai Charah

मक्तबतुल मदीना की किताब "सीरते मुस्त़फ़ा" सफ़ह़ा नम्बर 185 पर बुख़ारी शरीफ़ के ह़वाले से लिखा है : ह़ज़राते मुहाजिरीन चूंकि इन्तिहाई बे सरो सामानी की ह़ालत में बिल्कुल ख़ाली हाथ अपने अहलो इ़याल को छोड़ कर मदीना आए थे, इस लिए परदेस में बे सरो सामानी के साथ वह़शत व बेगानगी और अपने अहलो इ़याल की जुदाई का सदमा मह़सूस करते थे । इस में शक नहीं कि अन्सार ने इन मुहाजिरीन की मेहमान नवाज़ी और दिलजूई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन मुहाजिरीन देर तक दूसरों के सहारे ज़िन्दगी बसर करना पसन्द नहीं करते थे क्यूंकि वोह लोग हमेशा से अपने हाथों की कमाई खाने के आ़दी थे, लिहाज़ा ज़रूरत थी कि मुहाजिरीन की परेशानी को दूर करने और उन के लिए मुस्तक़िल ज़रीअ़ए मआ़श मुहय्या करने के लिए कोई इन्तिज़ाम किया जाए । इसी लिए ह़ुज़ूरे अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने ख़याल फ़रमाया कि अन्सार व मुहाजिरीन में रिश्तए उख़ुव्वत (भाईचारा) क़ाइम कर के इन को भाई भाई बना दिया जाए ताकि मुहाजिरीन के दिलों से अपनी तन्हाई और बेकसी का एह़सास दूर हो जाए और एक दूसरे के मददगार बन जाने से मुहाजिरीन के ज़रीअ़ए मआ़श का मस्अला भी ह़ल हो जाए । चुनान्चे, मस्जिदे नबवी की तामीर के बाद एक दिन ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने ह़ज़रते अनस बिन मालिक رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के मकान में अन्सार व मुहाजिरीन को जम्अ़ फ़रमाया, उस वक़्त तक मुहाजिरीन की तादाद 45 या 50 थी । ह़ुज़ूर नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने अन्सार को मुख़ात़ब कर के फ़रमाया : येह मुहाजिरीन तुम्हारे भाई हैं । फिर मुहाजिरीन व अन्सार में से दो दो को बुला कर फ़रमाते गए : येह और तुम भाई भाई हो । ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के इरशाद फ़रमाते ही येह रिश्तए उख़ुव्वत बिल्कुल ह़क़ीक़ी भाई जैसा रिश्ता बन गया । चुनान्चे, अन्सार ने मुहाजिरीन को साथ ले जा कर अपने घर की एक एक चीज़ सामने ला कर रख दी और केह दिया कि आप हमारे भाई हैं, इस लिए इन सब सामानों में आधा आप का और आधा हमारा है । ह़ज़रते साद बिन रबीअ़ अन्सारी رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की इस मुख़्लिसाना पेश्कश को सुन कर ह़ज़रते अ़ब्दुर्रह़मान बिन औ़फ़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने शुक्रिया के साथ कहा : अल्लाह पाक येह सब मालो मताअ़ आप को मुबारक फ़रमाए ! मुझे तो आप सिर्फ़ बाज़ार का रास्ता बता दीजिए ! उन्हों ने मदीने के मश्हूर बाज़ार "क़ैनुक़ाअ़" का रास्ता बता दिया । चुनान्चे, ह़ज़रते अ़ब्दुर्रह़मान बिन औ़फ़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ बाज़ार गए, कुछ घी और पनीर ख़रीद कर शाम तक बेचते रहे । इसी त़रह़ रोज़ाना वोह बाज़ार जाते रहे,

ह़त्ता कि थोड़े ही अ़र्से में काफ़ी मालदार हो गए और उन के पास इतना सरमाया जम्अ़ हो गया कि उन्हों ने शादी कर के अपना घर भी बसा लिया । जब येह बारगाहे रिसालत में ह़ाज़िर हुवे, तो ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने पूछा : तुम ने बीवी को कितना महर दिया ? अ़र्ज़ की : 5 दिरहम के बराबर सोना । (بخاری،کتاب مناقب الانصار،باب اخاء النبی...الخ،۲/۵۵۴، حدیث: ۳۷۸۰) नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : अल्लाह करीम तुम्हें बरकतें अ़त़ा फ़रमाए ! तुम दावते वलीमा करो अगर्चे एक ही बकरी हो । (بخاری،کتاب مناقب الانصار،باب اخاء النبی...الخ،۲/۵۵۵، حدیث:۳۷۸۱)

          ह़ज़रते अ़ब्दुर्रह़मान बिन औ़फ़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की तिजारत में रफ़्ता रफ़्ता इतनी ख़ैरो बरकत और तरक़्क़ी हुई कि ख़ुद उन का क़ौल है : मैं मिट्टी को छू  देता हूं, तो वोह भी सोना बन जाती है ।