Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442

Book Name:Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442

सबब, शैत़ान के धोके से निकलने, क़ुर्बे इलाही पाने और गुनाहों के मरज़ से शिफ़ा पाने का ज़रीआ़ है । इ़बादत करना ज़ाहिरो बात़िन की इस्लाह़, रूह़ की ताज़गी और दिलों के इत़मीनान का बाइ़स है । इ़बादत करना शरीअ़त को मत़लूब, हर बन्दए मोमिन

पर ह़क़ और इन्सान के पैदा करने का मक़्सद है । जैसा कि पारह 27, सूरतुज़्ज़ारियात की आयत नम्बर 56 में अल्लाह पाक इन्सान को पैदा करने का मक़्सद बयान करते हुवे इरशाद फ़रमाता है :

وَ مَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَ الْاِنْسَ اِلَّا لِیَعْبُدُوْنِ(۵۶) )   پ۲۷، الذّٰرِیٰت:۵۶(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और मैं ने जिन्न और आदमी इसी लिए बनाए कि मेरी इ़बादत करें ।

          इसी त़रह़ पारह 3, सूरए आले इ़मरान की आयत नम्बर 51 में इरशाद होता है :

اِنَّ اللّٰهَ رَبِّیْ وَ رَبُّكُمْ فَاعْبُدُوْهُؕ-)   پ۳،آل عمران:۵۱(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : बेशक अल्लाह मेरा और तुम्हारा, सब का रब है, तो उसी की इ़बादत करो ।

        पारह 1, सूरतुल बक़रह की आयत नम्बर 21 में इरशाद होता है :

یٰۤاَیُّهَا النَّاسُ اعْبُدُوْا رَبَّكُمُ الَّذِیْ خَلَقَكُمْ وَ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُوْنَۙ(۲۱) ) پ۱،البقرہ :۲۱(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ लोगो ! अपने रब की इ़बादत करो जिस ने तुम्हें और तुम से पेहले लोगों को पैदा किया । येह उम्मीद करते हुवे (इ़बादत करो) कि तुम्हें परहेज़गारी मिल जाए ।

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! इन आयाते मुबारका में इ़बादत का वाज़ेह़ बयान है और एक आयत में येह भी बयान किया गया कि इन्सानों और जिन्नों को अल्लाह पाक की इ़बादत के लिए पैदा किया गया है और जब हमारे ख़ालिक़ो मालिक "अल्लाह करीम" ने हमें हमारी पैदाइश का मक़्सद (Purpose) बता दिया, तो अब हम पर भी लाज़िम है कि हम उस मक़्सद को पाने में मसरूफ़ हो जाएं और ख़ूब ख़ूब अल्लाह पाक की इ़बादत करें और येह बात भी वाज़ेह़ है कि जहां इ़बादत करने का ह़ुक्म है, वहां इ़बादत किस त़रह़ करनी है ? इस की रेहनुमाई भी फ़रमाई गई । लिहाज़ा हमें चाहिए कि हम इ़बादत करने के त़रीके़ सीखें और उस के मुत़ाबिक़ इ़बादत बजा लाएं । मसलन फ़र्ज़ नमाज़ पढ़नी है या नफ़्ल, उस के ह़ुक़ूक़ अदा करने होंगे । तिलावते क़ुरआन के ज़रीए़ इ़बादत करनी है, तो क़ुरआने करीम दुरुस्त पढ़ना सीखना होगा । फ़र्ज़ ह़ज अदा करना है, तो ह़ज के ज़रूरी मसाइल व अह़काम सीखने होंगे । ज़कात फ़र्ज़ होने की सूरत में ज़कात के मसाइल सीखने होंगे ।

          एक त़रीक़ा येह भी है कि हम सब दावते इस्लामी के दीनी माह़ोल से वाबस्ता हो कर इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने के मुख़्तलिफ़ ज़राएअ़ अपनाएं, मसलन मदनी मुज़ाकरे देखें या सुनें, हफ़्तावार इजतिमाआ़त में अव्वल ता आख़िर पाबन्दी से शिर्कत की कोशिश करें, क़ाफ़िलों में सफ़र करें, नेक आमाल अपनाएं, दर्स व बयानात में शिर्कत करें और आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के दीनी माह़ोल से वाबस्ता रेह कर 12 मदनी कामों में ह़िस्सा ले कर अपनी क़ब्रो आख़िरत को संवारने की कोशिश करें ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد