Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442

Book Name:Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442

दूंगा । ٭ इजतिमाअ़ के बाद ख़ुद आगे बढ़ कर सलाम व मुसाफ़ह़ा और इनफ़िरादी कोशिश करूंगा ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! माहे रबीउ़ल आख़िर जारी व सारी है और आज इस की ग्यारहवीं शब है, जिस को आ़शिक़ाने ग़ौसे आज़म "बड़ी ग्यारहवीं शरीफ़" भी केहते हैं । इस तारीख़ को दुन्या भर में आ़शिक़ाने ग़ौस व आ़शिक़ाने औलिया, मह़बूबे सुब्ह़ानी, क़ुत़्बे रब्बानी, ग़ौसे समदानी, क़िन्दीले नूरानी, शहबाज़े ला मकानी, ह़ज़रते शैख़ अबू मुह़म्मद सय्यिद अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का उ़र्स मुबारक मनाते हैं । लिहाज़ा इसी मुनासबत से आज के बयान में हम ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का ज़िक्रे ख़ैर, शानो अ़ज़मत, फ़ज़ाइलो करामात और पाकीज़ा औसाफ़ के बारे में सुनेंगे । आइए ! शुरूअ़ में औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की शान सुनते हैं । चुनान्चे,

शाने औलिया

          पारह 11, सूरए यूनुस की आयत नम्बर 62 में इरशादे बारी है :

اَلَاۤ اِنَّ اَوْلِیَآءَ اللّٰهِ لَا خَوْفٌ عَلَیْهِمْ وَ لَا هُمْ یَحْزَنُوْنَۚۖ(۶۲)   (پ:۱۱،یونس:۶۲)

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान : सुन लो ! बेशक अल्लाह के वलियों पर न कुछ ख़ौफ़ है, न कुछ ग़म ।

          इस आयते मुबारका के तह़्त "तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान" में है : लफ़्ज़े "वली" विला से बना है, जिस का माना क़ुर्ब और नुसरत है । वलिय्युल्लाह वोह है जो फ़राइज़ की अदाएगी से अल्लाह करीम का क़ुर्ब ह़ासिल करे और अल्लाह करीम की इत़ाअ़त में मश्ग़ूल रहे और उस का दिल अल्लाह पाक के नूरे जलाल की मारिफ़त में मुस्तग़रक़ हो । (उस की शान येह हो कि) जब देखे, क़ुदरते इलाही के दलाइल को देखे और जब सुने, अल्लाह पाक की आयतें ही सुने और जब बोले, तो अपने रब की सना ही के साथ बोले और जब ह़रकत करे, इत़ाअ़ते इलाही में ह़रकत करे और जब कोशिश करे, तो उसी काम में कोशिश करे जो क़ुर्बे इलाही का ज़रीआ़ हो, अल्लाह पाक के ज़िक्र से न थके और चश्मे दिल से ख़ुदा के सिवा किसी को न देखे । येह सिफ़ात औलिया (رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن) की है, बन्दा जब इस ह़ाल पर पहुंचता है, तो अल्लाह पाक उस का वली व नासिर और मुई़नो मददगार होता है ।

ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की शानो अ़ज़मत

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! अल्लाह पाक ने ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ को बड़ी शानों से नवाज़ा था, मसलन आप पैदाइशी वली थे । (تفریح الخاطر،ص۵۸،مفہوماً) पैदा होते ही रोज़ा रख लिया । सह़री के वक़्त दूध नोश फ़रमाते और फिर ग़ुरूबे आफ़्ताब पर रोज़ा इफ़्त़ार करते थे । पांच बरस की उ़म्र में बिस्मिल्लाह ख़्वानी की रस्म अदा की गई, तो आप ने اَعُوْذُبِاللہِ مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْم और      بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْم के बाद 18 पारे ज़बानी सुना दिए और फ़रमाया : मेरी मां को भी इतना ही याद था, वोह पढ़ा करती थीं, तो मैं ने सुन कर याद कर लिया । (रिसाला : मुन्ने की लाश, स. 4) आप ने 40 साल