Hazrat Musa Ki Shan o Azmat

Book Name:Hazrat Musa Ki Shan o Azmat

اُخْرٰی कहें । अब बाक़ी मिट्टी फावड़े वग़ैरा से डाल दीजिए । (جوہرہ ، ص۱۴۱) ٭ जितनी मिट्टी क़ब्र से निकली है, उस से ज़ियादा डालना मक्रूह है । (फ़तावा हिन्दिया, 1 / 166) ٭ क़ब्र चौखूंटी (यानी चार कोनों वाली) न बनाएं बल्कि इस में ढाल रखें जैसे ऊंट का कोहान । (दफ़्न के बाद) इस पर पानी छिड़कना बेहतर है । क़ब्र एक बालिश्त ऊंची हो या मामूली सी ज़ाइद । (बहारे शरीअ़त, 1 / 846, मुलख़्ख़सन) ٭ दफ़्न के बाद क़ब्र पर अज़ान देना कारे सवाब (सवाब का काम) और मय्यित के लिए निहायत नफ़्अ़ बख़्श (फ़ाएदा देने वाला) है । (फ़तावा रज़विय्या, 5 / 703, माख़ूज़न) ٭ मुस्तह़ब येह है कि दफ़्न के बाद क़ब्र पर सूरए बक़रह का अव्वल व आख़िर पढ़ें, सिरहाने (यानी सर की जानिब) الٓمّٓ ता مُفْلِحُوْن तक और पाइंती (यानी पाउं की त़रफ़) اٰمَنَ الرَّسُوۡلُ से ख़त्मे सूरत तक पढ़ें । (बहारे शरीअ़त, 1 / 846) ٭ शजरह या अ़हद नामा क़ब्र में रखना जाइज़ है और बेहतर येह है कि मय्यित के मुंह के सामने क़िब्ले की जानिब त़ाक़ खोद कर उस में रखें बल्कि “ दुर्रे मुख़्तार “ में कफ़न पर अ़हद नामा लिखने को जाइज़ कहा है और फ़रमाया : इस से मग़फ़िरत की उम्मीद है । ٭ मय्यित के सीने और पेशानी पर بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡم लिखना जाइज़ है । यूं भी हो सकता है कि पेशानी पर बिस्मिल्लाह शरीफ़ लिखें और सीने पर कलिमए त़य्यिबा لَآاِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ مُحَمَّدٌ رَّسُوْلُ اللہِ صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم मगर नेहलाने के बाद कफ़न पेहनाने से पेश्तर (पेहले), कलिमे की उंगली से लिखें, रौशनाई (Ink) से न लिखें । (बहारे शरीअ़त, 1 / 848) ٭ क़ब्र से मय्यित की हड्डियां बाहर निकल पड़ें, तो उन हड्डियों को दफ़्न करना वाजिब है । (फ़तावा रज़विय्या, 9 / 406, माख़ूज़न)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد