Nabi e Kareem Kay Mubarak Ashaab ki Fazilat

Book Name:Nabi e Kareem Kay Mubarak Ashaab ki Fazilat

दूर की जाए, तो वोह जन्नती है । ( حلیۃ الاولیاء،۱۰/۴۵، حدیث: ۱۴۴۶۶) लिहाज़ा आप भी घर दर्स देने की निय्यत फ़रमा लीजिये । आइये ! तरग़ीब के लिये एक मदनी बहार मुलाह़ज़ा फ़रमाइये । चुनान्चे,

दिल की कैफ़िय्यत बदल गई

      बाबुल मदीना की इस्लामी बहन को डाइजेस्ट वग़ैरा पढ़ने का जुनून की ह़द तक शौक़ था । उन की ज़िन्दगी में अ़मल की बहार कुछ यूं आई । उन के बड़े भाई जो दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता थे, वोह मुख़्तलिफ़ रसाइल ले कर घर आते जिन्हें पढ़ कर उन्हें मदनी माह़ोल से उन्सिय्यत हो गई । आहिस्ता आहिस्ता दा'वते इस्लामी के इजतिमाआ़त में शिर्कत की बरकत से मदनी माह़ोल से भी वाबस्ता हो गईं और उन्हों ने बे पर्दगी से तौबा की और मदनी बुरक़अ़ सजाने, नमाज़ों की पाबन्दी करने का मदनी अ़ज़्म कर लिया और नेकियां करने में मसरूफ़ हो गईं मगर दा'वते इस्लामी के मदनी काम करने से कतराती थीं । उन के भाईजान बारहा उन्हें घर में दर्से फै़ज़ाने सुन्नत देने की तरग़ीब दिलाते मगर वोह दर्स देने से घबरातीं, इसी त़रह़ सिलसिला चलता रहा । एक दिन भाईजान सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ से वापसी पर "भयानक ऊंट" नामी एक रिसाला लाए । रिसाले का नाम बहुत दिलचस्प था, उन्हों ने उस रिसाले को पढ़ना शुरूअ़ किया और जब इन अल्फ़ाज़ को पढ़ा "हमारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर लोगों ने पथ्थर बरसाए मगर फिर भी आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने दीन की तब्लीग़ फ़रमाई और लोग हम पर फूल निछावर करें फिर भी हम जी चुराएं, हम पंखों में, क़ालीनों पर बैठ कर भी तब्लीग़े दीन न करें !" येह पढ़ कर उन के दिल की कैफ़िय्यत बदल गई । प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की अ़ज़ीम क़ुरबानियों के मुतअ़ल्लिक़ पता चला, तो बे साख़्ता उन की आंखों से आंसू जारी हो गए, उन्हों ने हिम्मत कर के दर्से फै़ज़ाने सुन्नत देने का इरादा कर लिया और जल्द ही अपने घर में दर्स देना शुरूअ़ कर दिया जिस में मह़ल्ले की इस्लामी बहनें शिर्कत करतीं । दर्से फै़ज़ाने सुन्नत की बरकत से इस्लामी बहनें अ़मल की त़रफ़ रागि़ब होने लगीं । करम बालाए करम येह कि दीगर इस्लामी बहनों ने भी दर्स देना शुरूअ़ कर दिया, यूं जल्द ही उन के अ़लाके़ में तीन जगह दर्से फै़ज़ाने सुन्नत शुरूअ़ हो गया ।

          अगर आप को भी दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल के ज़रीए़ कोई मदनी बहार या बरकत मिली हो, तो आख़िर में मदनी बहार मक्तब पर जम्अ़ करवा दें ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!   صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

          मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! सह़ाबए किराम رِضْوَانُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की शान निहायत ही बुलन्दो बाला है, अल्लाह करीम और उस के प्यारे ह़बीब, ह़बीबे लबीब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इन की ता'रीफ़ बयान फ़रमाई है । याद रहे ! मस्जिदे नबवी के एक किनारे पर एक चबूतरा था जिस पर खजूर की पत्तियों से छत बना दी गई थी, इसी चबूतरे का नाम "सुफ़्फ़ा" है । जो सह़ाबा घर बार नहीं रखते थे, वोह इसी चबूरते पर सोते, बैठते थे और येही लोग "अस्ह़ाबे सुफ़्फ़ा" कहलाते हैं ।