Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

तौफ़ीक़ हो, फै़ज़ाने रमज़ान भी तक़्सीम फ़रमाइए और ढेरों ढेर सवाब कमाइए । इस्लामी बहनें दीगर इस्लामी बहनों और मह़ारिम को चन्दे की तरग़ीब दिलाएं ।

ख़ुसूसी नुक्ता

        जो भी इस्लामी बहनें चन्दा इकठ्ठा करना चाहती हैं, उन्हें चन्दे के ज़रूरी अह़काम मालूम होना फ़र्ज़ है, हर एक की ख़िदमत में ताकीद है कि अगर पढ़ चुकी हैं, तब भी मक्तबतुल मदीना की किताब "चन्दे के बारे में सुवाल जवाब" का दोबारा मुत़ालआ़ फ़रमा लीजिए ।

दुआ़ए अ़त़्त़ार

          या अल्लाह पाक ! जो इस्लामी बहन (उ़ज़्र न होने की सूरत में) हर साल तीन महीनों के रोज़े रखने और हर साल जुमादल उख़रा में रिसाला "कफ़न की वापसी", माहे रजबुल मुरज्जब में "आक़ा का महीना" और शाबानुल मुअ़ज़्ज़म में "फै़ज़ाने रमज़ान" (मुकम्मल) पढ़ या सुन लेने की सआ़दत ह़ासिल करे, मुझे और उस को दुन्या और आख़िरत की भलाइयां नसीब फ़रमा और हमें बे ह़िसाब बख़्श कर जन्नतुल फ़िरदौस में अपने मदनी ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के पड़ोस में इकठ्ठा रख । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

       प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! हम ख़ौफे़ ख़ुदा में रोने की अहम्मिय्यत के बारे में सुन रही थीं । जदीद त़िब्बी तह़क़ीक़ात से साबित हुवा है कि रोने के भी कई फ़ाएदे हैं । आइए ! आंसू बहाने के कुछ त़िब्बी फ़वाइद सुनती हैं ।

रोने के त़िब्बी फ़वाइद

          ٭ माहिरीन के मुत़ाबिक़ वोह पानी जो आंसूओं की सूरत में आंखों से निकलता है, आंख से निकलने वाले दीगर पानियों (Waters) से मुख़्तलिफ़ होता है । ٭ तह़क़ीक़ से मालूम हुवा है कि हर इन्सान को हफ़्ते में कम अज़ कम एक बार पन्द्रह (Fifteen) मिनट तक रोना चाहिए । ٭ हफ़्ते में एक बार का रोना, दिमाग़ी सलाह़िय्यतों पर अच्छा असर डालता है । ٭ माहिरीन का केहना है कि आंसू इन्सानी जिस्म में मौजूद कोलेस्ट्रोल (Cholesterol) को कम करते हैं । ٭ बोझल त़बीअ़त में बेहने वाले आंसू, ज़ेह्नी दबाव का ख़ातिमा करते हैं, जिस से ब्लड प्रेशर (Blood Pressure), शूगर (Sugar) और दिल के अमराज़ (Heart Diseases) नहीं होते । ٭ आंसूओं को रोकने से आंखों में डीहाईड्रेशन हो जाती है, जिस से बीनाई कमज़ोर होती है जब कि हफ़्ते में एक बार रोने से बीनाई बेहतर होती है । ٭ तह़क़ीक़ से येह बात भी सामने आई है कि आंसूओं की सूरत में जो पानी आंखों से निकलता है, उस में कई त़रह़ के कीमियाई अज्ज़ा होते हैं । ऐसे आंसू इन्तिहाई कम मिक़्दार में भी बहाए जाएं, तो इस के नतीजे में शिरयानों में ख़ून के क़त़रे जमने का अ़मल सुस्त पड़ जाता है और जिल्दी अमराज़ (Skin Diseases) से नजात मिलती है । (मुख़्तलिफ़ वेबसाइटस से माख़ूज़)

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! मुमकिन है कि आंसू बहाने के फ़वाइद सुन कर रोने का ज़ेहन बन रहा हो । येह याद रख लें कि शरअ़न जो रोना पसन्दीदा है और जिस पर सवाब है, वोह रोना