Book Name:Achy amaal ki barkaten
अपने आमाल का मुह़ासबा करना । ٭ अच्छे अख़्लाक़ से पेश आना । ٭ तक़्वा व परहेज़गारी इख़्तियार करना । ٭ सदक़ा व ख़ैरात करना । ٭ मां-बाप की फ़रमां बरदारी । ٭ मह़रम रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक करना । ٭ बड़ों का अदब और छोटों पर शफ़्क़त करना । ٭ मद्रसतुल मदीना बालिग़ात में पढ़ना और पढ़ाना । ٭ हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शिर्कत करना । ٭ मदनी दर्स देना और उस में शिर्कत करना । ٭ नेकी की दावत देना और बुराई से मन्अ़ करना । ٭ इनफ़िरादी कोशिश करना । ٭ घर में मदनी माह़ोल बनाना । ٭ इसी त़रह़ गुनाहों जैसे झूट, ग़ीबत, चुग़ली, ह़सद, बद गुमानी सब से बचना, अल ग़रज़ ! अच्छे आमाल बे शुमार हैं ।
याद रखिए ! येह दुन्या अ़मल करने की जगह है, हम यहां जो भी अ़मल करेंगी उस की सज़ा या जज़ा हमें आख़िरत में मिलेगी, अ़मल अच्छा होगा, तो उस की जज़ा भी अच्छी होगी और अ़मल बुरा हुवा, तो उस का नतीजा (Result) भी बुरा ही होगा । आज के बयान में हम अच्छे आमाल की बरकतों के बारे में सुनेंगी, अ़मल की अहम्मिय्यत पर भी कुछ निकात बयान किए जाएंगे । इस में शक नहीं कि आमाल का बदला आख़िरत में मिलेगा लेकिन दुन्या में भी अच्छे आमाल की बरकतें ज़ाहिर होती हैं, इस से मुतअ़ल्लिक़ भी कुछ वाक़िआ़त और निकात पेश किए जाएंगे । ऐ काश ! पूरा बयान अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ मुकम्मल तवज्जोह के साथ सुनना नसीब हो जाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
चार दिरहमों के बदले चार दुआ़एं
ह़ज़रते मन्सूर बिन अ़म्मार رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ एक रोज़ बयान फ़रमा रहे थे, किसी ह़क़दार ने चार दिरहम का सुवाल किया । ह़ज़रते सय्यिदुना मन्सूर رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने एलान फ़रमाया : जो इस को चार दिरहम देगा, मैं उस के लिए चार दुआ़एं करूंगा । उस वक़्त वहां से एक ग़ुलाम गुज़र रहा था, एक वलिय्ये कामिल की रह़मत भरी आवाज़ सुन कर उस के क़दम थम गए और उस के पास जो चार दिरहम थे वोह उस ने साइल को पेश कर दिए । ह़ज़रते मन्सूर رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने फ़रमाया : बताओ कौन कौन सी चार दुआ़एं करवाना चाहते हो ? अ़र्ज़ किया : (1) मैं ग़ुलामी से आज़ाद कर दिया जाऊं । (2) मुझे इन दराहिम का बदला मिल जाए । (3) मुझे और मेरे आक़ा को तौबा नसीब हो । (4) मेरी, मेरे आक़ा की, आप की और तमाम ह़ाज़िरीन की बख़्शिश हो जाए । ह़ज़रते मन्सूर رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने हाथ उठा कर दुआ़ फ़रमा दी । ग़ुलाम अपने आक़ा के पास देर से पहुंचा, आक़ा ने सबबे ताख़ीर दरयाफ़्त किया, तो उस ने वाक़िआ़ केह सुनाया । आक़ा ने पूछा : पेहली दुआ़ कौन सी थी ? ग़ुलाम बोला, मैं ने अ़र्ज़ किया : दुआ़ कीजिए ! मैं ग़ुलामी से आज़ाद (Free) कर दिया जाऊं । येह सुन कर आक़ा की ज़बान से बे साख़्ता निकला : जा ! तू ग़ुलामी से आज़ाद है । पूछा : दूसरी दुआ़ कौन सी करवाई ? कहा : जो चार दिरहम मैं ने दे दिए हैं, उस का नेमल बदल मिल जाए । आक़ा बोल