Book Name:Mot ke Holnakian Shab-e-Bra'at
मह़ब्बत भरे अन्दाज़ में एक दम इसरार पर उतर आए कि आज तो चलना ही पड़ेगा, वोह टालते ही रहे मगर इस्लामी भाई न माने और देखते ही देखते उन्हों ने रिक्शा रोक लिया और बड़ी मिन्नत के साथ कुछ इस अन्दाज़ में बैठने के लिये दरख़ास्त की, कि अब उन से इन्कार न हो सका और वोह रिक्शे में बैठ कर दा'वते इस्लामी के अव्वलीन मदनी मर्कज़, जामेअ़ मस्जिद, गुल्ज़ारे ह़बीब जा पहुंचे । जब दुआ के लिये लाइटें बुझाई गईं, तो येह समझ कर कि इजतिमाअ़ ख़त्म हो गया, वोह उठ कर जाने लगे, तो उस मोह़सिन इस्लामी भाई ने मह़ब्बत भरे अन्दाज़ में समझा बुझा कर उन्हें जाने से रोका, तो वोह दोबारा बैठ गए । अन्धेरे में ब आवाज़े बुलन्द ज़िक्रुल्लाह की धूम ने उन का दिल हिला दिया । उन्हों ने ज़िन्दगी में कभी ऐसी रूह़ानिय्यत देखी थी, न सुनी थी फिर जब रिक़्क़त अंगेज़ दुआ शुरूअ़ हुई, तो शुरकाए इजतिमाअ़ की हिच्कियों की आवाज़ बुलन्द होने लगी, ह़त्ता कि वोह भी फूट फूट कर रोने लगे और उन्हों ने अपने गुनाहों से तौबा की और दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल के हो कर रह गए । (फै़ज़ाने सुन्नत, स. 443)
तुम्हें लुत़्फ़ आ जाएगा ज़िन्दगी का
क़रीब आ के देखो ज़रा मदनी माह़ोल
तनज़्ज़ुल के गहरे गढ़े में थे उन की
तरक़्क़ी का बाइ़स बना मदनी माह़ोल
यक़ीनन मुक़द्दर का वोह है सिकन्दर
जिसे खै़र से मिल गया मदनी माह़ोल
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
ए'तिकाफ़ की तरग़ीब
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ عَزَّ وَجَلَّ माहे रमज़ानुल मुबारक की आमद आमद है और इस माहे मुबारक की बरकतों के तो क्या कहने कि इस माह में इ़बादत करने और नेकियों में इज़ाफ़ा करने के मवाके़अ़ बहुत बढ़ जाते हैं । चुनान्चे, इस माह में नेकियां बढ़ाने और ख़ुद को गुनाहों से बचाने और ख़ूब ख़ूब इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने का