Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)

Book Name:Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)

नामदार, नबिय्ये मुख़्तार صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के इख़्तियारात पर कि सारी उम्मत पर पांच नमाज़ें फ़र्ज़ होने के बा वुजूद एक साह़िब की गुज़ारिश क़बूल करते हुवे उन्हें तीन फ़र्ज़ नमाज़ें छोड़ने की इजाज़त अ़त़ा फ़रमा दी । जैसा कि :

           मरवी है कि एक साह़िब नबिय्ये अकरम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ख़िदमत में ह़ाज़िर हुवे और इस शर्त़ पर इस्लाम क़बूल करने के लिये आमादा हुवे कि मैं दो ही नमाज़ें पढ़ा करूंगा, आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने क़बूल फ़रमा लिया । (مسند احمد،مسند البصریین،۷/۲۸۳،حدیث:۲۰۳۰۹) याद रहे ! नमाज़ छोड़ने की येह इजाज़त सिर्फ़ उन्ही साह़िब के लिये ख़ास थी, किसी और के लिये एक नमाज़ भी बिला उ़ज़्रे शरई़ छोड़ना जाइज़ नहीं ।

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि सारे मुसलमानों पर 5 नमाज़ें फ़र्ज़ हैं मगर प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने उन साह़िब को अपने इख़्तियार से 3 नमाज़ें न पढ़ने की इजाज़त अ़त़ा फ़रमा दी । यूंही रोज़े के कफ़्फ़ारे का भी एक वाक़िआ़ है, वोह भी सुनिये मगर इस से पहले येह मस्अला ज़ेहन में रखिये कि रोज़ा तोड़ने के बारे में आ़म ह़ुक्म येह है कि रमज़ानुल मुबारक में किसी आ़क़िल (या'नी अ़क़्लमन्द), बालिग़, मुक़ीम (या'नी ग़ैरे मुसाफ़िर) ने अदाए रोज़ए रमज़ान की निय्यत से रोज़ा रखा और बिग़ैर किसी सह़ीह़ मजबूरी के जान बूझ कर जिमाअ़ किया या करवाया या कोई भी चीज़ लज़्ज़त के लिये खाई या पी, तो रोज़ा टूट गया और इस की

क़ज़ा और कफ़्फ़ारा दोनों लाज़िम हैं । (फ़ैज़ाने सुन्नत, ब ह़वालए : رَدُّالْمُحتَار ج۳ص۳۸۸) (क़ज़ा तो येह है कि वोह रोज़ा इ़लावा रमज़ान किसी और दिन दोबारा रखे और) कफ़्फ़ारा येह है कि मुमकिन हो, तो एक रक़बा या'नी बान्दी या ग़ुलाम आज़ाद करे और येह न कर सके, तो पै दर पै (या'नी मुसल्सल) साठ रोज़े रखे, येह भी न कर सके, तो साठ मसाकीन को पेट भर, दोनों वक़्त खाना खिलाए । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सए पंजुम, 1 / 994, मुल्तक़त़न) रोज़ा तोड़ने वाले हर मुसलमान के लिये येही ह़ुक्मे शरई़ है मगर शारेए़ इस्लाम, शाहे ख़ैरुल अनाम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ